शिक्षक रामत्व का प्रकाश दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाना होगा– बी. आर . शंकरानन्द
नई दिल्ली, 18 अप्रैल।
bhartiya shikshan mandal: भारतीय शिक्षण मंडल के ५५ वें स्थापना दिवस के अवसर पर एआईसीटीई के प्रज्ञान सभागार में ‘शिक्षा में रामत्व एवं अमृत काल में विकसित भारत’ कार्यक्रम आयोजित हुआ। आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ० मनमोहन वैद्य ने कहा कि शिक्षक विषय नहीं पढ़ाता, वह अपने छात्रों को पढ़ाता है। समाज निर्माण की महती जिम्मेदारी भी शिक्षक के कन्धों पर ही है। शिक्षा एवं सीखने में अंतर है। जीवन का उद्देश्य, साध्य, एवं लक्ष्य तीनों ही अलग हैं, हमें इसे समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि भारत का जीवन आध्यात्मिकता से प्रेरित है, हमारी जीवन पद्धति आध्यात्मिक मूल्यों से गहराई से जुड़ी है। समय की महत्ता को स्पष्ट करते हुए डॉ० वैद्य ने कहा कि हम समय का प्रबंधन नहीं करते हैं, समय हमारा प्रबंधन करता है। इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी. आर. शंकरानन्द ने कहा कि अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा सिर्फ मूर्ति की नहीं अपितु रामत्व के साथ भारत की प्राण प्रतिष्ठा हुई है।
व्यक्तित्व विकास की आधार स्तम्भ शिक्षा है, अच्छी शिक्षा व्यवस्था देश को सही दिशा देती है। शिक्षा की गुणवत्ता एवं देश की गुणवत्ता एक दूसरे के पूरक हैं। भारत अपने ज्ञान, त्याग, एवं पराक्रम के कारण विश्व में विशिष्ट पहचान रखता है। प्रत्येक शिक्षक को द्वीप नहीं दीप बनना होगा, तथा रामत्व का प्रकाश दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाना होगा।
मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रो० टी जी सीताराम ने कहा कि राम ने अपनी जीवन यात्रा के दौरान जीवन के आदर्शों की शिक्षा दी, एवं विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य मार्ग पर चलने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि मूल्य आधारित शिक्षा स्वयं के विकास के साथ ही सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। विकसित भारत अब सिर्फ सपना नहीं अपितु सच्चाई है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय शिक्षण मंडल (bhartiya shikshan mandal) के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रो० सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि प्रभु श्रीराम के व्यक्तित्व से आदर्श समाज निर्माण की शिक्षा मिलती है, राम का जीवन दर्शन भारतीय समाज को दिशा देता है। रामायण कोई मिथक नहीं है, यह भारत का इतिहास है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने पहली बार शिक्षा में भारतीय मूल्यों को समाहित करने का कार्य किया। यह शिक्षा नीति आने वाले भारत का स्वर्णिम भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी। भारत ने कभी एकांगी विचार नहीं किया है, हम हमेशा से सभी के कल्याण की भावना रखते रहे हैं। आने वाली पीढ़ी को संस्कार देना हमारी महती जिम्मेदारी है, जिसमें भारतीय शिक्षण मंडल का योगदान महत्वपूर्ण है।
एनसीईआरटी के निदेशक प्रो० दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि भारत का सबसे बड़ी संपदा मानव संसाधन के रूप में विद्यमान है। मानव संसाधन अगर विकृत हुआ तो हमारे सभी संसाधन बेकार है। हमारी सभ्यता प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए विकसित हुई है, और आज भी हम प्रकृति के साथ ही विकास के मार्ग पर बढ़ सकते हैं।
सीबीएसई के सचिव हिमांशु गुप्ता ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने मूल्य आधारित शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया है। मुनि इंटरनेशनल स्कूल के निदेशक अशोक कुमार ठाकुर ने स्कूली शिक्षा की स्थिति एवं वर्तमान चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
डॉ० अशोक कुमार त्यागी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन शिक्षकों के कन्धों पर ही है। उन्होंने कहा कि चुनौतियां हैं किन्तु समाधान भी उपलब्ध हैं। अन्य प्रमुख वक्ताओं के रूप में एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक जे. एस. राजपूत, दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो० धनञ्जय जोशी, एआईसीटीई के उपाध्यक्ष श्री अभय जेरे ने भी अपने विचार व्यक्त किये । इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के प्रकाशन विभाग एवं यश प्रकाशन द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित पुस्तक ‘शिक्षा में रामत्व’ का विमोचन किया गया । कार्यक्रम का संचालन डॉ० आदित्य प्रकाश त्रिपाठी एवं डॉ० अंशु जोशी ने किया जबकि अतिथियों का स्वागत प्रो० अजय कुमार सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ०धर्मेन्द्र नाथ तिवारी ने किया । कार्यक्रम में उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी, वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय, शौर्य डोभाल, अनिल सहस्त्रबुद्धे, प्रो० रवि टेकचन्दानी सहित सैकड़ों की संख्या में विद्वतजन उपस्थित रहे।
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