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पंजाब के लुधियाना में हुआ था जन्म, आजादी की खातिर हुए बलिदान

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।  

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: लाला लाजपत राय एक प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, लेखक, पत्रकार और प्रभावशाली वक्ता थे। साथ ही, वे स्वतंत्र भारत के सांसद भी रहे। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ही देश में प्रथम स्वदेशी बैंक ‘पंजाब नेशनल बैंक’ और ‘लक्ष्मी बीमा कंपनी’ की स्थापना की थी? उनके अथक प्रयासों से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।

आइए, “पंजाब केसरी” लाला लाजपत राय के जीवन परिचय और उनकी महान उपलब्धियों को विस्तार से जानते हैं।

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लाला लाजपत राय का जीवन परिचय, Lala Lajpat Rai Ka Jivan Parichay

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी – राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार, वक्ता और सांसद तथा “पंजाब केसरी” के नाम से लोकप्रिय, लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के लुधियाना जिले के धुदिके ग्राम में हुआ था।

उनके पिता,  राधा किशन उर्दू और फारसी के अध्यापक थे तथा उन्हें शिक्षा से गहरा लगाव था और उनका चरित्र बहुत ऊंचा था।

उनकी माता मती गुलाब देवी बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की की मा महिला थीं। लाला लाजपत राय को अपने पिता से कर्तव्यनिष्ठा, उत्तरदायित्व, स्पष्टवादिता, ध्येयनिष्ठा, बलिदान की भावना तथा स्वतंत्रता एवं माता से दानशीलता, विशालहृदयता, दयालुता और धर्मानुराग जैसे गुण विरासत में प्राप्त हुए थे।

लाला लाजपत राय की शिक्षा 

लाजपत राय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कुछ अपने पिता से तथा कुछ विद्यालय में अपने अध्यापकों से प्राप्त की थी। विद्यालय में वह आमतौर पर अपनी कक्षा में प्रथम आते थे।

उन्होंने बहुत से पुरस्कार भी जीते थे। अपने अध्यापकों से उन्हें स्नेह और प्रशंसा भी मिली थी।

लाजपत राय ने गांव के विद्यालय और लुधियाना और अंबाला के मिशन स्कूल से पढ़ाई की। खराब स्वास्थ्य और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने अपने शैक्षिक जीवन के प्रत्येक चरण पर अपनी विशिष्टता को बनाए रखा।

अपने स्कूल के दिनों से ही उनमें पठन, लेखन एवं व्याख्यान देने की धुन समा चुकी थी जो उनमें जीवनपर्यन्त बनी रही। उन्होंने पाठ्येत्तर गतिविधियों में गहन रुचि ली तथा स्कूल के दिनों से ही नेतृत्व के गुणों को प्रदर्शित किया।

वर्ष 1880 में, उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रवेश लिया तथा साथ-साथ विधि कॉलेज में भी दाखिला ले लिया। उन्होंने 1883 में मुख्तारी के लिए लाइसेंस लिया तथा जगरांव तहसील, लुधियाना (पंजाब) के राजस्व न्यायालय में वकालत आरंभ कर दी।

वर्ष 1886 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से प्लीडर की परीक्षा पास करके एक वकील की अर्हता प्राप्त की और हिसार में अपनी वकालत शुरू की। शीघ्र ही एक वकील के रूप में ख्याति अर्जित की।

आर्य समाज में प्रवेश

लाजपत राय ने 1882 में आर्य समाज की शिक्षा ग्रहण की तथा शोघ्र ही इसके अग्रणी नेताओं में शामिल हो गए। इस पथ पर चलने में इनके कॉलेज जीवन के दो वर्ष निर्णायक रहे।

रोहतक में उन्हें स्थानीय आर्य समाज का सचिव नियुक्त किया गया। अपने रोहतक प्रवास के दौरान, उन्होंने इसे आर्य समाज की गतिविधियों का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण केन्द्र बना दिया।

लाजपत राय ने आर्य समाज को एक व्यावहारिक सामाजिक सेवा संगठन बना दिया। उन्होंने देश के विभिन्न भागों में अकाल के दौरान पीड़ित जनता के प्रति अपनी गहन चिन्ता का पर्याप्त प्रमाण दिया।

राहत कार्य के प्रति स्वयं को समर्पित करते हुए उन्होंने यह दिखा दिया कि आत्मनिर्भरता तथा स्व-सहायता से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

लाला लाजपत राय एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता, लोक हितैषी तथा लोकोपकारक थे। वर्ष 1896, 1899-1900 तथा 1907-1908 के अकालों और 1905 में कांगड़ा में भूकम्प के दौरान देशवासियों के इस सच्चे सेवक ने प्रभावित लोगों को प्रकृति के विकराल रूप से राहत दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

समाज सुधारक

वह एक प्रभावशाली समाज सुधारक थे। उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु कार्य किया तथा आर्य समाज द्वारा इस उद्देश्य हेतु शुरू किये गये अभियान को पुरजोर समर्थन दिया।

बाद में जब महात्मा गांधी ने हरिजन सेवक संघ के माध्यम से इस क्षेत्र में कार्य शुरू किया तो उन्होंने इस संगठन के लिए कार्य करना शुरू कर दिया क्योंकि यह संगठन समस्या को एक बेहतर तरीके से निरूपित करता था।

उन्होंने कहा कि विश्व में अन्य महत्वपूर्ण आंदोलनों की भांति इस समाज सुधार को भी राष्ट्रीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा।

दलित उत्थान के लिए समर्पित

समाज में दलित वर्गों को सम्मानजनक स्थिति में लाने के प्रयास में लालाजी ने सेंट्रल होम तथा केन्द्रीय विद्यालय बनाने हेतु लाहौर में एक बड़ा भूखण्ड भी खरीदा था।

लालाजी द्वारा 1908 में एकत्र की गई अकाल राहत कोष राशि में से शेष धनराशि के एक भाग का प्रयोग दलित वर्गों के उत्थान हेतु किया गया।

इन वर्गों के लाभार्थ इस धनराशि का प्रयोग कुछ प्राथमिक विद्यालयों के रख-रखाव के लिये भी किया गया।

निराश्रित बच्चों के लिए अनाथ आलय खोला

एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लाला लाजपत राय का जीवन दूरगामी परिणामों वाली सामाजिक अनुभूतियों की एक सूची था। जहां तक हिन्दू समाज में सामान्य रूप से और उसके अछूतों तथा महिला समुदाय में विशेष रूप से सुधार लाने का संबंध है, वह एक महान सामाजिक- आर्थिक सिद्धान्तवादी थे।

अकाल राहत के संयोजक और कार्यकर्ता के रूप में उनका अदम्य उत्साह लगभग प्रत्येक नए कार्य में अलग-अलग रूपों में दिखायी दिया।

अनाथ और निराश्रित वच्चों के लिए अनाथालयों की स्थापना करने की उनकी योजना की प्राधिकारियों ने भी प्रशंसा की और उसे मान्यता दी।

इस दृष्टि से एक समाज सुधारक के रूप में लालाजी का स्थान अपने समकालीन समाज सुधारकों में काफी ऊंचा था।

शिक्षा पर विशेष ध्यान

महान शिक्षाविद् लालाजी ने अपने जीवन काल का अधिकांश समय और अपनी शक्ति शिक्षा संबंधी कार्यकलापों में लगा दी।

आर्य समाज तथा उसके शैक्षिक कार्यक्रम में उन्हें अपनी आकांक्षाओं को पूर्ति का साधन प्राप्त हुआ तथा डीएवी कालेज उनको शैक्षिक गतिविधियों का केन्द्र साचित हुआ।

वह आरंभ से ही डीएवी कालेज के साथ घनिष्ठता में जुड़े रहे। शिक्षा का महत्व उनके लिए सर्वाधिक था क्योंकि उसी पर व्यक्ति का सम्पूर्ण भविष्य निर्भर करता है।

उनका विचार था कि शिक्षा का ध्येय और उद्देश्य प्रगति करना है और प्रगति की कसौटी स्वाधीनता का विकास है।

लाजपत राय का साहित्यिक योगदान

लेखक के रूप में लाला लाजपत राय सहज लेखनी के धनी थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपने विचार व्यक्त किये तथा अपने समकालीन व्यक्तियों पर गहरा प्रभाव छोड़ा।

उस अवधि (1895-1900) के दौरान उन्होंने मैजिनी, गैरीबाल्डी, शिवाजी तथा स्वामी दयानन्द की जीवनियां लिखीं।

उन्होंने एक अमरीकी लेखिका, मिस कैथरीन मेयो को उनकी पुस्तक “मदर इंडिया” के लिए आड़े हाथों लिया जो कि गांधी जी के शब्दों में “ड्रेन इंस्पेक्टर्स डायरी” थी और जिसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर खुलकर कीचड़ उछाला गया था।

उन्होंने अपनी पुस्तक “अनहैप्पी इंडिया” में उनके दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दिया।

इंग्लैंड में राजनीतिक अभियान का नेतृत्व

वर्ष 1905 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी ने जब यह जान लिया कि वह एक आत्मसंयमी, ईमानदार और निःस्वार्थ कार्यकर्ता हैं जो देश और इसके हित के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं तो उसने उन्हें भारतीय लोगों की राजनीतिक समस्याओं को ब्रिटिश जनता के समक्ष प्रस्तुत करने के उद्देश्य से एक प्रतिनिधि के रूप में चुना।

गोपालकृष्ण गोखले के साथ उन्होंने इंग्लैंड के विभिन्न भागों में राजनीतिक अभियान चलाया तथा ब्रिटेन की जनता को सहानुभूति-शून्य अफसरशाही सरकार जिसके अधीन भारत संघर्ष कर रहा था, की बुराइयों से अवगत कराया।

अपनी वाक्पटुता और तथ्यों तथा आंकड़ों की सहायता से उन्होंने “भारत के अधपेट तथा अधमर लोगों” की भलाई के लिए संघर्ष किया।

उनकी बातों का “अंग्रेजों” पर काफी प्रभाव पड़ा। बाद में वह अमरीका गये जहां उन्होंने स्वयं अनेक शैक्षिक संस्थाओं का कार्यकरण देखा।

लाला लाजपत राय का आदर्श भारतीय राष्ट्रीयता था जिसके लिए उन्होंने कार्य किया, कष्ट झेले और अंततः अपना जोवन अर्पित कर दिया। उन्होंने राष्ट्रवादी भावना पर अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी और उसे एक नया अर्थ दिया।

इससे राष्ट्रवादी आंदोलन ने एक नया मोड़ ले लिया। उनके लिए “देशभक्ति” का अर्थ था: स्वतंत्रता और न्याय के प्रति गहरा प्रेम तथा आत्मसम्मान ।

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लाल-बाल-पाल की तिकड़ी

दिसम्बर 1905 में बनारस कांग्रेस अधिवेशन में लालाजी ने सरकार द्वारा बंगाल में आंदोलन को कुचलने के लिए अपनाए गए दमनकारी कदमों का कड़ा विरोध किया।

बंगाल विभाजन (बंग-भंग) के पश्चात् लाल बाल-पाल “भारतीय राजनीति की त्रिमूर्ति” के रूप में पहचाने जाने लगे। कांग्रेस में लाजपत राय ग्रुप ने कड़ा रुख अख्तियार किया।

लाला लाजपत राय और राष्ट्रवादियों ने पहली बार सर्वोच्च भारतीय मूल्यों में यह परिकल्पना की कि स्वराज भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है। सचमुच ही यह लक्ष्य शेर-ए-पंजाब की विरासत थी।

लाला लाजपत राय की गिरफ्तारी

ज्यों-ज्यों स्वदेशी आंदोलन जोर पकड़ता गया लालाजी ने इसमें अपनी पूरी शक्ति लगा दी। उन्होंने “स्वदेशी” संदेश का प्रचार किया और उसे पंजाब के लोगों में लोकप्रिय बनाया।

इससे नौकरशाही कुद्ध हो गयी और ब्रिटिश तथा आंग्ल-भारतीय प्रेस उन्हें एक “क्रांतिकारी” के रूप में पेश करने लगी। उन्होंने “पंजाब कोलोनाइजेशन एक्ट” और सिंचाई की दरों में की गई वृद्धि का विरोध किया।

सरकार के कुकृत्यों का पर्दाफाश करने वाले समाचारपत्र “पंजाबी” पर चलाये गये मुकदमे के कारण पंजाब के लोगों की भावनाएं भड़क उठीं।

सरकार इतनी भयभीत हो गयी कि उसने 9 मई 1907 को लाला लाजपत राय को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मान्डले फोर्ट में कैद कर दिया।

ब्रितानिया एजेंटों के दुष्प्रचार का दिया करारा जवाब

चूंकि ब्रिटिश सरकार विदेशों में राष्ट्रवादी आंदोलन के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रही थी। अतः लालाजी इस दुष्प्रचार को विफल करने के लिए अप्रैल 1914 में इंग्लैंड गए।

इसके तुरंत बाद प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया और वह अमरीका चले गए, जहां उन्होंने ब्रिटिश एजेंटों, जो अमरीका में भी सक्रिय थे, द्वारा शुरू किये गये दुष्प्रचार का मुकाबला करना शुरू कर दिया।

उस समय इस बात की अत्यधिक आवश्यकता थी कि अंग्रेजों द्वारा भारत में किए जा रहे निरंकुश शासन तथा भारतवासियों पर पड़ रहे उसके दुष्प्रभाव के बारे में अमरीका के लोगों को जानकारी दी जाए।

राजनीतिक स्वतंत्रता के पक्षधर

विश्व युद्ध जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था, को देखते हुए, ब्रिटिश सरकार का विचार था कि यदि लाला लाजपत राय वापस आ गए तो उसके हितों के लिए हानिकारक सिद्ध होंगे।

इसलिए जब वह भारत से बाहर थे तो उनकी स्वदेश वापसी पर रोक लगा दी गई। यद्यपि उन्हें पांच वर्षों तक राजनैतिक निर्वासन के लिए मजबूर किया गया था परंतु वह दिल और दिमाग से अपने देश की पीड़ित जनता से जुड़े रहे।

लाजपत राय ने विदेशी शासन से भारत की मुक्ति के लिए तन्मयतापूर्वक कार्य किया और उनका विश्वास इस बात में था कि राजनीतिक स्वतंत्रता के बिना आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों में सुधार सम्भव नहीं है।

इंडियन होम रूल लोग ऑफ अमरीका की शुरुआत

वर्ष 1916 में, जब तिलक और मती एनी बेसेन्ट ने भारत में होम रूल आंदोलन शुरू किया, उसी समय लाजपत राय ने “इंडियन होम रूल लोग ऑफ अमरीका” की शुरुआत की, जिसके अध्यक्ष वह स्वयं थे। इसका मुख्यालय ब्रॉडवे, न्यूयार्क में था।

इस लीग का उद्देश्य भारत के होम रूल आंदोलन का समर्थन करना और भारत तथा अमरीका में होम रूल लीग और इस प्रकार के अन्य संगठनों के बीच सहयोग स्थापित करना और दूसरे, भारत तथा अमरीका के बीच मैत्रीपूर्ण, सामाजिक, सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंधों को और अधिक सदद करना था।

वर्ष 1920 में भारत लौटने के बाद राजनीतिक स्कूल स्थापित करने को उनकी योजना साकार हुई और इसका नाम तिलक के नाम पर रखा गया। “सर्वेन्दम ऑफ इंडिया सोसाइटी”, पना” के मॉडल के आधार पर संगठित “मोसाइटी ऑफ लाइफ मेम्बर्स ” के माध्यम से तिलक स्कूल ऑफ पालिटिक्स द्वारा व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाना था।

लाजपत राय द्वारा स्थापित सोसायटी ने दिए उच्चकोटि के नेता

“द सर्वेन्ट्स ऑफ पीपल सोसाइटी” ने राजनीति, सामाजिक कल्याण, हरिजन उत्थान, ग्रामीण पुनर्निर्माण, शिक्षा आदि के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया था।

इस सोसाइटी ने देश को उच्चकोटि के अनेक नेता प्रदान किए जिनमें स्वर्गीय  लाल बहादुर शास्त्री,  पुरुषोत्तम दास टंडन,  बलवंत राय मेहता और अन्य अनेक विशिष्ट व्यक्ति थे।

लाला लाजपत राय की सोसाइटी में जन भावना से प्रेरित ऐसे अनेक व्यक्ति थे जो पूर्णतः राष्ट्र सेवा को समर्पित थे।

लाजपत राय ने कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छोड़ा

कलकत्ता में सितम्बर 1920 में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा लाला लाजपत राय को अध्यक्ष चुना गया।

उनके नेतृत्व में जलियांवाला बाग कांड के बाद कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का संकल्प लिया। वर्ष 1921 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

अपनी रिहाई और असहयोग आंदोलन को वापस लिए जाने के बाद, लाजपत राय सी.आर. दास और मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित स्वराज पार्टी में शामिल हो गये।

भारत सरकार अधिनियम, 1919 (गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ऑफ 1919) में अधिनियम लागू होने के दस वर्षों के भीतर एक सांविधिक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था और इसके परिणामस्वरूप 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई। भारतीय लोगों ने इसमें किसी भी भारतीय को प्रतिनिधित्व न देने पर इसका जबरदस्त विरोध किया और दिसम्बर 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका बहिष्कार करने का संकल्प पारित किया।

लाजपत राय का निधन

लोगों को साइमन कमीशन के गठन के तरीके पर अपना रोष प्रकट करने से रोकने के लिए सरकार ने धारा 144 लागू कर दी थी।

लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए जुलूस का नेतृत्व किया। दिनांक 30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में बहिष्कार प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अपने सीने पर लाठियां खाईं जिससे अंततः 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने इस घटना के बारे में जो कहा वह एक भविष्यवाणी सिद्ध हुई:

मुझ पर किया गया लाठी का प्रत्येक प्रहार अंग्रेजी साम्राज्यवाद के ताबूत में एक-एक कील ठोकने के बराबर है। मैं नहीं जानता कि मैं जीवित रहूंगा अथवा नहीं किंतु लोग चिन्ता न करें। मेरे बाद मेरी आत्मा आपको स्वतंत्रता के लिए और अधिक बलिदान देने की प्रेरणा देती रहेगी।”

जब राष्ट्र लाला लाजपत राय को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा थाः

लालाजी अपने आप में एक संस्था थे। उनकी राष्ट्रभक्ति किसी भी प्रकार से संकीर्ण नहीं थी… उनकी गतिविधियां बहुआयामी थीं… शायद ही कोई ऐसा जन आंदोलन रहा होगा जिसमें लालाजी की भागीदारी न रही हो। उन्होंने ऐसे समय में राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्यौछावर किये जब सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता था।”

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