प्रवासी साहित्य की प्रेरणा और सृजन-पद्मेश गुप्त के साथ एक शाम कार्यक्रम का आयोजन

नई दिल्ली, 18 अप्रैल।    

प्रवासी साहित्य की प्रेरणा और सृजन पद्मेश गुप्त की वाणी प्रकाशन ग्रुप द्वारा प्रकाशित तीन पुस्तकों का लोकार्पण व विशिष्ट परिचर्चा का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अशोक चक्रधर, प्रख्यात कवि व आलोचक जितेन्द्र श्रीवास्तव, लेफ्टिनेंट जनरल विवेक कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, कवि व लेखक अनिल जोशी, प्रसिद्ध लेखक पॉल ग्युस्टेफ्सन(ऑक्सफोर्ड), हिन्दी सेवी तितिक्षा (बर्मिंघम) और वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने पद्मेश गुप्त के व्यक्तित्व पर अपने विचार प्रकट किए।

वरिष्ठ कवि प्रो. अशोक चक्रधर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि “पद्मेश एक मुहब्बत के बुलबुले से, नाज़ुक से, कपास से, व्यक्तित्व हैं। जी करता है कि हज़ारों बाँहों में भर लें और इनका जो अपनापन है उसकी सुगन्ध में जियें। मैं पद्मेश से व्यक्तिगत नाते का जुड़ाव भी महसूस करता हूँ।  इतना कि इनकी आत्मा का किरायेदार हो गया हूँ। पढ़ते-पढ़ते जीवन के अनुभवों ने पद्मेश जी को कवि बनाया है। इन जीवनानुभवों से सौन्दर्यानुभूति को बदलते हुये अपना रास्ता निर्मित किया है और उनका रास्ता इतना प्रामाणिक है कि वह ईमानदार हैं। लेखन में उनके निजी अनुभव हैं। उन अनुभवों से निकले नये आवेग हैं। उनके लेखन में मूलतत्त्व भावनात्मकता है। मैं उनको कहानीकार पहले मानता हूँ क्योंकि उनमें कहानियों की सम्भावनाएँ हैं। उनकी कहानियों में हम संकीर्णता से आगे निकल जाने की प्रेरणा देखते हैं। उनकी कहानियाँ खुली रहती हैं, बन्द नहीं होती हैं। प्रवासी साहित्य की रोशनी पद्मेश की कहानियों से आ रही है। पद्मेश को इन पुस्तकों के लिये शुभकामनाएँ और आप लिखते रहें यही कामना है।”

वरिष्ठ  पत्रकार श्री राहुल देव ने कहा कि पद्मेश जी को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूँ। उनके लेखन, चिन्तन और मित्र वत्सलता से परिचित हूँ। मुझे इस बात का गर्व है कि वह लखनऊ की एक विभूति हैं। उन्होंने लखनऊ का मान बढ़ाया है। वह मूलत: कवि हैं गद्य उनके लेखन में बाद में आता है। उनकी कविताएँ विलक्षण हैं। सरल शब्दों और विचारों के माध्यम से अन्त: तक जाने वाला जो उनका छन्द है वह बहुत प्रभावशाली है। कविताओं में उनकी चुनौतियां, सफलताएँ दिखती हैं। ‘डेड एंड’ की कहानी ‘कब तक’ आज के माहौल में बहुत प्रासंगिक है। भारत के विभाजन और आज के दौर में भी जो विसंगतियां हैं उसके संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इसको दर्ज किया जाना चाहिए। वहीं पुस्तक की कहानी ‘यात्रा’ का ज़िक्र करते हुये कहा कि यह अलग ही तेवर और भाव की कहानी है। कहना होगा कि यह ऐसे व्यक्तित्व व चरित्र की कहानी है जो इस जीवन के अनुभवों से लेकर जब आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है तो उसके अनुभवों को भी देखती है।  कहानी की बात महत्त्वपूर्ण है जो हमे वेदान्त तक ले जाती है। यह कहानी जाग्रत चेतना की कहानी है। ‘डेड एंड’ में बहुत गहरी बात है। जीवन की अनिश्चितता और अनिवार्यता की कहानी कहती है ‘डेड एंड’। इसमें लखनऊ की कहानी है। ये कहानियाँ पढ़ी जानी चाहिए।

हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ समीक्षक एवं आलोचक प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि जहाँ सहजता होती है लोग उसे सरल मान लेते हैं लेकिन सरल की संश्लिष्टता पर उनका ध्यान नहीं जाता। पद्मेश जी की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि ये सरलमना कवि की कविताएँ है लेकिन सरल कविताएँ नहीं हैं। ‘तुम नज़र आये’ कविता का आंशिक पाठ करते हुये बोले कि यह एक पल की कविता है लेकिन सीमित अर्थ की नहीं। प्रेम के अर्थ में यह सांस्कृतिक यात्रा है। यह कविता बताती है कि कवि के मन का लोकेल तो भारत है। लेकिन कवि का भौतिक लोकेल यूरोप में है। यह कविता समय के साथ हुई एक विश्वसनीय सांस्कृतिक यात्रा की तरह यह प्रेम कविता हमारे सामने आती है। छोटी-छोटी भावप्रवण कविताएँ हैं। मन की त्वचा को स्पर्श करने वाली कविताएँ हैं। पद्मेश जी की कविता एक पूरा सांस्कृतिक वितान रचती है। एक महत्त्वपूर्ण बात जो इनकी कविताओं और कहानियों को मज़बूत बनाती है,वह है कि विडम्बनाओं की पहचान अचूक है इनके लेखन में। चाहे वह प्रेम की विडम्बनाएँ हों, पारिवारिक जीवन की विडम्बनाएँ हों, सामान्य रिश्तों की विडम्बनाएँ हों, अचूक पहचान है और इस पहचान ने इनकी पुस्तकों को इस लायक बनाया है कि इन्हें ध्यान से पढ़ा जा सके।

लेफ़्टिनेंट जनरल एवं कवि श्री विवेक कश्यप ने कहा कि, “पद्मेश की कहानियाँ बहुत अच्छी हैं। मैंने पुस्तक एक बार में पढ़ ली। इन कहानियों में लोगों के भावों की झलक मिलती है। कहानियों में मानवीय भावनाओं का सम्बन्ध है। कविताओं में प्रेम शेक्सपियर ब्रैंड की तरह दिखता है। प्रेम की परिभाषा और उसका स्वरूप दिखता है। उनकी कविताएँ वर्तमान में जीने की जिज्ञासाओं को दिखाती कविताएँ है। पद्मेश की यात्रा आनन्दमयी और जीवन्त भावुक है। जब आप उनकी लेखनी से गुज़रेंगे तो आप स्वयं को उनकी कहानियों और कविताओं का पात्र महसूस करने लगेंगे।”

प्रवासी साहित्य के विशेषज्ञ एवं लेखक श्री अनिल जोशी ने कहा कि, “पद्मेश गुप्त ने हिन्दी के कवियों की अन्तरराष्ट्रीय छवि बनाने में बहुत योगदान दिया।  उन्होंने पत्रिकाओं के सम्पादन के ज़रिये यूके में हिन्दी को आगे बढ़ाया है। पत्रिका ‘पुरवायिका’ के सम्पादन और प्रकाशन के ज़रिये हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलायी। पद्मेश जी का प्रवासी व्यक्तित्व के रूप में बहुत योगदान है।”

ऑक्सफ़ोर्ड से पधारे अंग्रेज़ी साहित्यकार ने पद्मेश गुप्त के कहानी संग्रह को अत्यंत पठनीय बताया और कहा कि “डेड एंड के अंग्रेज़ी संस्करण का ऑक्सफ़ोर्ड शहर स्वागत करता है और उनकी कहानियों की  रेडियो और टेलीविज़न पर प्रस्तुतीकरण होनी चाहिए।”

कार्यक्रम में वक्ताओं का परिचय देते हुए ब्रिटेन की हिन्दी सेवी एवं कवयित्री सुश्री तितिक्षा ने कहा कि पद्मेश जी से लोगों के प्रति प्रेम, भाईचारे और सौहार्दपूर्ण व्यवहार तथा उनसे जुड़ी यादें साझा करते हुए कहा कि  “मैं यहाँ सिर्फ़ अपनी बात कहने नहीं आयी हूँ मैंने उन तमाम लोगों के भाव बाँटने आयी हूँ जो भाव लोग पद्मेश के लिए रखते है।”उन्होंने पद्मेश के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हम सब का सौभाग्य है कि Britain को पद्मेश जैसा हिन्दी का मित्र मिला। हाल ही में London Book Fair में वाणी प्रकाशन के सौजन्य से पद्मेश जी की, बड़े इंतिज़ार के बाद डेड एंड कहानी संग्रह का ऐतिहासिक लोकार्पण हुआ। किसी हिंदी की पुस्तक का पहली बार London Book fair में लोकार्पण वाणी प्रकाशन की महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। इसके साथ ही डेड एंड पुस्तक का अंग्रेज़ी में प्रकाशन पद्मेश गुप्त का England, विशेष रूप से Oxford शहर के लिए विशेष surprise रहा। धैर्य, विनम्रता और मैनेजमेंट जैसे स्किल्स पर्यायवाची इनके लिये कम पड़ने लगे। साथ ही उन्होंने पद्मेश के यूके में हिन्दी साहित्य के प्रति पत्रिकाओं के ज़रिये किये गये योगदान को भी याद किया।

लेखक डॉ पद्मेश गुप्त ने प्रवासी साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “हिन्दी साहित्य के वैश्वीकरण में प्रवासी साहित्य की अहम् भूमिका निभा रहा है क्योकि आज प्रवासी लेखक जिस देश, जिस परिवेश में रह रहे हैं, उस जीवन को लिख रहे हैं।” उन्होंने भारतीय साहित्य के प्रकाशन और पुस्तकों को विदेशों में प्रमोट करने पर ज़ोर दिया और इस दिशा में वाणी प्रकाशन के काम करने की सराहना की। डॉ गुप्त ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि, “ विश्व के लोगों में हिन्दी साहित्य के प्रति जिज्ञासा है। लेकिन हमें इसको लेकर कुछ करना चाहिए। मैंने अपने कहानी संग्रह को ब्रिटेन की शिक्षिका सुरेखा चोफला को समर्पित किया है। उसका कारण यह है कि मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि जो शिक्षक कवि, पत्रकार व लेखक नहीं होते हम उनको वह सम्मान नहीं देते जिसके वे हक़दारी होते हैं। शिक्षकों का बहुत महत्त्व होता है। उनको हमें सम्मान देना चाहिये। मेरी दृष्टि में प्रवासी लेखन बहुत मासूम और मौलिक है। प्रवासी लेखन का कार्य जोर-शोर से हो रहा है। प्रवासी लेखकों ने बहुत संघर्ष किया है हिन्दी साहित्य की मुख्य धारा में आने के लिये।

प्रवासी लेखन ने हिन्दी साहित्य और उसकी वैश्विकता को बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है। जब हिन्दी के वैश्वीकरण की बात आती है तो मुझे लगता है कि सच्चा वैश्वीकरण तब होगा जब आज से 300 साल बाद इंग्लैंड या यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के किसी नागरिक को जानना होगा कि कॉविड की लड़ाई उनके परिवार ने कैसे लड़ी या Brexit के दौरान यूरोप पर क्या बीती तो उनसे कहा जायेगा कि यदि इतिहास आपको जानना है तो हिन्दी प्रवासी लेखन को देखना चाहिये। 80-90 के दशक में बहुत कम प्रवासी लेखन हुआ क्योंकि उन्हें प्रकाशक नहीं मिलते थे। 2000 के दशक के बाद अनेक प्रवासी लेखक सामने आये। प्रवासी लेखन के प्रकाशन में अरुण माहेश्वरी जी ने बहुत योगदान दिया है। प्रवासी लेखन को उसकी भावनाओं से तौलना चाहिये ना कि भाषा से। प्रवासी लेखन के माध्यम से आज हिन्दी का वैश्वीकरण हो रहा है।”

कार्यक्रम का संचालन वाणी प्रकाशन ग्रुप की ओर से श्रीमती अदिति माहेश्वरी-गोयल ने किया और अपने विचार रखते हुये कहा कि, “हिन्दी साहित्य की गरिमा क्योंकि विश्व भर में मानवता के साथ जुड़ती है उसकी संवेदना हम सबको एक करती है और हम ये समझ चुके है कि ‘Hindi is not a third world problem, It is a first world solution’।

अन्त में वाणी प्रकाशन ग्रुप के प्रबन्ध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में भारी संख्या में साहित्य प्रेमी, विद्यार्थी, शोधार्थी और लेखकगण मौजूद रहे। 

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