रुपये के मुकाबले डॉलर का मौजूदा रेट और पिछले वर्षों का विश्लेषण

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

New Delhi: रुपये की गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अक्टूबर 2024 में विदेशी मुद्रा बाजार में ₹79,240 करोड़ (9.28 अरब डॉलर) की बिक्री की। आरबीआई ने इस दौरान $27.5 अरब डॉलर खरीदे और $36.78 अरब डॉलर बेचे। इस कदम का उद्देश्य रुपये को स्थिर रखना था, लेकिन इसके बावजूद रुपये की कीमत में गिरावट जारी रही। अक्टूबर के अंत तक, आरबीआई ने फॉरवर्ड बाजार में $49.18 अरब डॉलर की शुद्ध बिक्री की, जबकि सितंबर में यह आंकड़ा $14.58 अरब था।

अक्टूबर 10 से लेकर 24 दिसंबर तक रुपये में 125 पैसे की गिरावट आई, और यह 85.207 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ। अक्टूबर का महीना रुपये के लिए सबसे अस्थिर रहा, क्योंकि विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाला और वैश्विक स्तर पर अमेरिकी चुनावों के कारण रुपये पर दबाव बढ़ा। इस दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी घटकर $652.87 अरब हो गया, जो पहले $704.9 अरब था।

आरबीआई रुपये की अस्थिरता को कम करने के लिए लगातार बाजार में हस्तक्षेप करता है। केंद्रीय बैंक का उद्देश्य रुपये को गिरने से रोकना और विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता बनाए रखना है। हालांकि, रुपये की गिरावट जारी रही, और 26 नवंबर को 1 डॉलर की कीमत ₹84.34 थी, जो 25 दिसंबर तक ₹85.40 तक पहुंच गई। इसका मतलब यह है कि अब 1 डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, यानी रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है।


डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट

पिछले वर्षों में रुपये की गिरावट:

  1. 2020: ₹75-₹76 प्रति डॉलर
  2. 2021: ₹73-₹74 प्रति डॉलर
  3. 2022: ₹82-₹83 प्रति डॉलर
  4. 2023: ₹83.5-₹84.8 प्रति डॉलर
  5. 2024: दिसंबर तक ₹85.4 प्रति डॉलर


वर्तमान स्थिति (
25 दिसंबर 2024):

  • 1 डॉलर = ₹85.40

रुपया गिरने और मजबूत होने का प्रभाव

रुपया गिरने का प्रभाव:

  • महंगाई में वृद्धि: आयातित वस्तुओं (जैसे कच्चा तेल) की कीमतें बढ़ती हैं।
  • विदेशी कर्ज महंगा: भारत के विदेशी कर्ज चुकाने का खर्च बढ़ जाता है।
  • विदेश यात्रा महंगी: भारतीय नागरिकों के लिए विदेश यात्रा का खर्च बढ़ जाता है।
  • निर्यात को बढ़ावा: निर्यातकों को लाभ होता है क्योंकि उनके उत्पाद सस्ते हो जाते हैं।


रुपया मजबूत होने का प्रभाव:

  • आयात सस्ता: कच्चा तेल और अन्य वस्तुओं का आयात सस्ता हो जाता है।
  • विदेश यात्रा सस्ती: भारतीय यात्रियों को कम खर्च करना पड़ता है।
  • निर्यात को नुकसान: निर्यातकों के उत्पाद महंगे हो सकते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा घटती है।
  • विदेशी निवेश आकर्षण: मजबूत रुपया विदेशी निवेशकों को आकर्षित करता है।
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