1857 की क्रांति: 13 सितंबर इतवार के दिन यह साफ जाहिर था कि दिल्ली पर धावा होने में अब देर नहीं है। बहुत से लोगों का ख्याल था कि यह हमला अगली सुबह होगा।
अंग्रेज सिपाहियों ने सारा दिन दीवारों पर सीढ़ी लगाकर चढ़ने के अभ्यास में गुज़ारा। आपस में उन्होंने वोट से यह भी फैसला किया कि वह कौन लोग होंगे, जो शहर पर कब्जा होने के बाद उसकी लूट के कानूनी जिम्मेदार होंगे।
एडवर्ड कैंपबैल को खुद बड़ा आश्चर्य हुआ, जब उसको सबसे ज्यादा वोट मिले। उसने जब अपनी इस नियुक्ति के बारे में सुना तो वह लड़ाई के नए मोर्चे, कश्मीरी दरवाजे के सामने पुराने मुगल बाग कुदसिया बाग में था, जहां उसे बाड़ा हिंदू राव से पांच दिन पहले ही बुलाया गया था।
अगले दिन सुबह 11 बजे बड़े अफसरों की एक मीटिंग में जनरल विल्सन ने ऐलान किया कि निकल्सन हमले का नेतृत्व करेगा। हमला अगले दिन लगभग सूर्यास्त के समय तय किया गया। फौज के चार दस्ते होंगे और हर दस्ता दीवारों के उत्तर में विभिन्न खुले हिस्सों से शहर में दाखिल होगा और अलग-अलग जगहों पर जाएगा।
एक पांचवां दस्ता रिजर्व के रूप में काम करेगा। एडवर्ड वाइबर्ट को यह पता चलने पर बहुत गुस्सा आया कि वह उस दस्ते में था और हमले में हिस्सा नहीं ले सकेगा। थियो मैटकाफ उस दस्ते का नेतृत्व कर रहा था, जिसे कश्मीरी दरवाज़े से शहर में दाखिल होना था और जामा मस्जिद पर कब्जा करना था, जिसे बाद में किले पर हमला करने के अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।