अपने लिए जासूसी करने वाले दिल्लीवालों के साथ अंग्रेजों ने किया यह सलूक
1857 की क्रांति: 14 सितंबर को अंग्रेजों ने दिल्ली के अधिकतर हिस्से पर कब्जा कर लिया। एक बार जब अंग्रेज दीवारों के अंदर घुस आए, तो वह बड़े इत्मीनान से अपने सब समर्थकों और मददगारों को भूल गए। उनके बहुत से वफादार जासूस भी सुरक्षित नहीं थे, जैसा कि मौलवी मुहम्मद बाकर को 15 सितंबर को पता चला, जब उनको बगैर कोई वजह बताए पकड़कर गिरफ्तार कर लिया गया।
विलियम डेलरिंपल ने अपनी किताब आखिरी मुगल में लिखा है कि इस हद से ज्यादा बेइंसाफी से अंग्रेजों के सबसे बड़ चापलूस समर्थक तक हैरान रह गए।
मुईनुद्दीन हुसैन खान ने लिखा कि “शहर में किसी की भी जान महफूज नहीं थी। जो भी तंदरुस्त और जवान आदमी दिखता था, उसको बागी समझकर गोली मार दी जाती थी।”
मिर्जा गालिब भी जिनको शुरू से ही बागी सिपाही नापसंद थे, अब इस तरह वापस आए हुए अंग्रेजों की हैवानियत देखकर दंग रह गए। वह अपनी दस्तंबू में लिखते हैं: “फातेह लोगों ने जिस किसी को सड़क पर देखा उसको मार डाला। जब यह बिफरे शेर शहर के अंदर दाखिल हुए तो सब बेबस और कमजोर लोग मार डाले गए और उनके घर जला दिए गए। हर तरफ कत्ले-आम हो रहा था और सड़कों पर दहशतनाक दृश्य थे। हो सकता है फतेह के बाद इसी तरह का जुल्मो-सितम किया जाता हो।
सबसे ज्यादा जालिम और कातिल वह लोग थे, जिनका कोई दोस्त या रिश्तेदार गदर के शुरू में मारा गया था। अंग्रेजों के शहर में दाखिले के फौरन बाद चार्ल्स ग्रिफिथ्स गुड़गांव के भूतपूर्व कलेक्टर जॉन क्लिफर्ड से मिला जो ऐनी जेनिंग्स की दोस्त और गिरजा में साथ गाने वाली मिस क्लिफर्ड का बड़ा भाई था। जॉन ने अपनी बहन को गदर शुरू होने से एक रात पहले जेनिंग्स खानदान के साथ रहने लाल किले भेज दिया था। अब वह अपने को इल्जाम दे रहा था कि उसकी मौत का वह खुद जिम्मेदार था।
ग्रिफिथ्स खुद कोई अमनपसंद उदार आदमी नहीं था, लेकिन वह भी उससे दंग रह गया जो उसने देखा। “मेरा पुराना स्कूल का साथी बिल्कुल बदल गया था। उसके जज़्बात पूरी तरह उभर आए थे और उसके दिमाग में इंतकाम के अलावा कोई और ख्याल नहीं था। मेरठ छोड़ने के बाद वह अपनी तलवार, राइफल और पिस्तौल लिए हर उस लड़ाई में मौजूद होता, जो क्रांतिकारियों के साथ की जा रही होती। उसकी राइफल हर एक को बगैर किसी रिआयत के मौत के घाट उतार देती।
उसे अपनी जिंदगी की कोई परवाह नहीं थी। वह सिर्फ अपने इंतकाम का पूरा जोश अपनी बहन के कातिलों पर उतारना चाहता था और खुद को बुरी तरह खतरे में डाल लेता… “मैं उससे शहर में दाखिल होने के बाद एक सड़क पर मिला। उसने मुझसे हाथ मिलाया और कहा कि उसे रास्ते में जो भी मिला, उसने उसे मौत के घाट उतार दिया और औरतों और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। उसके जोश भरे लहजे और खून में सने कपड़ों को देखकर मुझे यकीन था कि वह सच बोल रहा है। फौज में इस तरह के कई और अफसर मौजूद थे, जिन्होंने अपनी बीवी या रिश्तेदारों को खोया था और उनका भी ऐसा ही बर्ताव था जैसे क्लिफर्ड का था।