कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि वो उस होटल के कमरे में पहुंच गए जहां शास्त्री का पार्थिव शरीर रखा हुआ था। एक दूसरे कमरे में वाई. बी. चव्हाण और स्वर्ण सिंह कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठे हुए थे और शास्त्री के उत्तराधिकारी के बारे में सोच-विचार कर रहे थे। स्वर्ण सिंह ने मुझे भी बातचीत में शामिल करते हुए पूछा कि मेरे विचार में अगला प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए। मैंने उन्हें बताया कि शास्त्री ने मुझसे कहा था कि अगर वे तीन-चार वर्ष तक जीवित रहे तो अगले प्रधानमंत्री वाई.बी. चव्हाण होंगे, लेकिन अगर वे एक-दो वर्षों में ही चल बसे तो इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री होंगी।
शास्त्री के निधन का फलैश भेजने के बाद मैं उनके सहयोगियों के पास लौट आया। और रात की घटनाओं के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगा। मुझे पता चला कि विदाई पार्टी में शामिल होने के बाद शास्त्री रात को लगभग 10.00 बजे अपने आवास पर लौटे थे उसी समय जगन्नाथ और शास्त्री के निजी सेवक रामनाथ समेत कुछ सहयोगी उनके कमरे में चले आए थे। वे सब इस्लामाबाद में अयूब के चाय के न्यौते के बारे में सुन चुके थे और शास्त्री की सुरक्षा को लेकर चिन्तित थे। उन्हें डर था कि पाकिस्तानी क्षेत्र में उनके विमान की उड़ान के दौरान पाकिस्तान कोई भी शरारत कर सकता था। जगन्नाथ ने उन्हें लड़ाई के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता के साथ हुई घटना की याद दिलाई, जिनके डकोटा विमान को एक पाकिस्तानी लड़ाकू विमान ने मार गिराया था। (छयालीस वर्ष बाद इस विमान के पायलट कैस हुसैन ने भारतीय विमान के पायलट की बेटी को एक पत्र लिखकर अपने किए की माफी माँगी और कहा कि उसने गलती से उस विमान को बीचक्राफ्ट समझ लिया था।) शास्त्री ने कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हो चुका था और अयूब एक अच्छे आदमी थे, इसलिए डरने की कोई बात नहीं थी।
उन्होंने रामनाथ को टी.एन. कील के घर से अपना खाना लाने के लिए कहा, जो उनका बावर्ची जा मुहम्मदी पकाया करता था। विदाई पार्टी में भी थोड़ा-बहुत खा लेने के कारण उन्हें ज्यादा भूख नहीं थी। उन्होंने पालक के साग और आलू की सब्जी के साथ हल्का भोजन किया। खाने के बीच ही उन्हें दिल्ली से फोन आया, जिसे जगन्नाथ ने सुना। यह शास्त्री के एक अन्य निजी सचिव वेंकटरमन का फोन था। उन्होंने बताया कि दिल्ली में ताशकन्द समझौते की अनुकूल प्रतिक्रिया हो रही थी, लेकिन शास्त्री के घर के लोग खुश नहीं थे। उन्होंने यह भी बताया कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेन्द्रनाथ द्विवेदी और जनसंघ के अटल बिहारी बापजेयी ने हाजी पीर और टिथवाल से भारतीय सेनाओं को पीछे हटाने की आलोचना की थी। जब शास्त्री को यह बात बताई गई तो उन्होंने कहा कि विपक्ष तो समझौते की आलोचना करेगा ही। फिर भी शास्त्री समझौते की प्रतिक्रिया को लेकर सचमुच ही काफी चिन्तित थे।