जीनत- उल – मसाजिद ( 1700 ई.)

औरंगजेब का जहां तक बस चल सका, उसने अपनी लड़कियों और बहनों से ब्रह्मचर्य का पालन करवाया और इस बेजा नीति का शिकार होने वालियों में औरंगजेब की लड़की जीनत-उल-निसा बेगम थी। 1700 ई. में उसने इस मस्जिद की तामीर करवाई और अपने नाम पर इसका नाम रखा, जो जामा मस्जिद के बाद अपनी किस्म की दिल्ली की बेहतरीन इमारतों में से एक है।

यह दरियागंज में खैराती घाट या मस्जिद घाट दरवाजे पर है, जो सड़क के बाएं हाथ बेला रोड पर जाते वक्त पड़ती है। किसी जमाने में इस दरवाजे के बाहर यमुना नदी बहा करती थी और दरवाजे के सामने ही किश्तियों का पुल पार जाने को बना हुआ था। यमुना के उस पार से जिस इमारत का दृश्य दूर से दिखाई देता है, उसमें यह सबसे आगे है। यह कोसों दूर से नजर आती है। पहले तो इसकी कुर्सी बहुत ऊंची है, फिर दरिया के किनारे इसके आगे कोई इमारत नहीं है।

यह मस्जिद शहर की फसील से कोई तीस गज के फासले पर दरिया की तरफ, जमीन की सतह से चौदह फुट ऊंची है, मगर शहर की तरफ सड़क के बराबर है। यह सारी-की-सारी लाल पत्थर की बनी हुई है। इसका सहन 195 फुट लंबा और 110 फुट चौड़ा है, जिसमें लाल पत्थर के चौके बिछे हुए हैं। बीच में एक हौज है, जो 43 फुट लंबा और 33 फुट चौड़ा है।

मस्जिद के तीनों गुंबद संगमरमर के बने हुए हैं, जिनमें संगमूसा की धारियां बनाई गई हैं। इनके कलस सुनहरे हैं। मस्जिद 150 फुट लंबी और 60 चौड़ी है। मस्जिद के सात दर हैं। बीच वाला दर बहुत बड़ा है और इधर-उधर के तीन-तीन दर छोटे हैं। दरिया के रुख पर जो चबूतरा है, उसमें दो सैदरियां हैं और तीन महराबदार हुजरे हैं और बाकी पत्थर की चौखटों की कोठरियां हैं।

ये कमरे भिन्न-भिन्न लंबाई-चौड़ाई के हैं और इनमें से कुछ में एक-दूसरे से रास्ता है और कुछ में नहीं इन कमरों के उत्तर तथा दक्षिण में महराबदार दो दरवाजे हैं, जिनमें सत्रह – सत्रह सीढ़ियां बनी हुई हैं, जो मस्जिद के सहन तक पहुंचती हैं। कमरों की बुलंदी जमीन की सतह से सहन मस्जिद के फर्श तक चौदह फुट है और उसके ऊपर आठ फुट ऊंचा कटघरा है। दक्षिण की ओर का दरवाजा- मस्जिद घाट दरवाजा फसील के पास है और उत्तर की ओर का बंद कर दिया गया है। इन दोनों दरवाजों में लकड़ी के किवाड़ चढ़े हुए हैं। मस्जिद में आने-जाने का सदर दरवाजा दक्षिण की ओर था, जो सड़क की तरफ है। अब आने-जाने के वास्ते एक छोटा दरवाजा मस्जिद की पछील की दीवार में निकाल लिया गया है, जो शायद पहले खिड़की रही हो ।

जीनत-उल-निसा बेगम ने अपने जीवन काल में ही अपना मजार इस मस्जिद में बनवा लिया था, जिसमें उसे 1700 ई. में दफन किया गया। यह मकबरा गदर के तुरंत बाद गिरा दिया गया था. संगमरमर की यादगार वहां से हटा दी गई थी और कब्र भी जमीन के साथ मिला दी गई थी। मकबरा मस्जिद के उत्तर में था। यह खारे के पत्थर का बना हुआ था, अंदर के कमरे में संगमरमर का फर्श था और कब्र के गिर्द संगमरमर का एक नीचा कटघरा था। कब्र के सिरहाने की तरफ एक कुतबा लिखा हुआ है।

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