भारतीय नृत्य शैली को विश्व रंगमंच पर लोकप्रिय करने का श्रेय

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Biography of Uday shankar: भारतीय नृत्य शैलियों को विश्व के रंगमंच पर प्रस्तुत कर प्रचारित व प्रसारित करने का श्रेय विश्वविख्यात नर्तक उदय शंकर को जाता है। उनका जन्म ८ दिसंबर, १९०० को उदयपुर में डॉ. श्याम शंकर चौधरी के पुत्र के रूप में हुआ। उनके पिता शिक्षा विभाग में सरकारी सलाहकार थे। बाद में राजस्थान की रियासत झालावाड़ के दीवान हुए, तत्पश्चात् इंग्लैंड चले गए। उदयपुर में जन्म होने के कारण उन्होंने अपने पुत्र का नाम ‘उदय शंकर’ रखा।

उदय शंकर का बचपन, Uday shankar childhood

बाल्यकाल से ही उनमें चित्रकला और संगीत के प्रति अभिरुचि थी, अतः बंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से चित्रकला का प्रशिक्षण लिया, बाद में उच्च प्रशिक्षण प्राप्ति हेतु वे लंदन चले गए। संयोगवश उनका परिचय एक विश्वविख्यात रूसी नर्तकी अन्ना पैवलोवा से हुआ। उस नर्तकी की प्रेरणा और परामर्श ने उनके कलात्मक जीवन की दिशा ही बदल डाली और ये चित्रकार से नर्तक बन गए।

उदय शंकर का संगीत करियर,

उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्यों को संयोजित कर अन्ना पैक्लोवा के सहयोग व निर्देशन से उन्हें नृत्य नाटिकाओं के रूप में प्रदर्शित शुरू किया। उन दोनों की जोड़ी ने देश और विदेशों में धूम मचा दी। नृत्य की यह पद्धति विदेशों में ओरिएंटल डांस के रूप में विख्यात हुई।

उनकी प्रसिद्धि के साथ जब धन की भी प्राप्ति हुई, तब उन्होंने एक ग्रुप का निर्माण किया, जिसमें उस्ताद अलाउद्दीन खाँ, वी. शिराली, तिमिर बरन एवं शंकरन नंबूदिरीपाद जैसे संगीतज्ञ और नृत्य के मर्मज्ञ सम्मिलित थे।

विभिन्न प्रांतों के नर्तक और नर्तकियाँ भी इस ग्रुप के साथ जुड़ गई। अमला, सचिन शंकर, जोहरा, अजरा तथा शांतिबर्द्धन जैसे देशी नर्तक तथा सिमकी एवं मेनका जैसी विदेशी नर्तकियाँ भी उदय शंकर पार्टी में थीं। उनके अनुज प्रसिद्ध सितार वादक पं. रविशंकर बाल्यकाल में इसी मंडली में नर्तक के रूप में कार्यक्रम दिया करते थे।

उदय शंकर की निजी जिंदगी, Uday shankar married life

विदेशों में नृत्य के कार्यक्रम के दौरान ही पेरिस में अमला नंदी और उनकी पहली भेंट हुई। उनकी प्रेरणा व कृपा से अमला नृत्य की ओर उन्मुख हुई। कुछ दिनों की कला साधना के पश्चात् अमला और उदय शंकर विवाह सूत्र में बँध गए। इस प्रतिभावान् दंपती ने भारतीय नृत्य-संगीत को परिवर्धित करने तथा इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में अतुलनीय योगदान दिया। कला एवं प्रतिभा को मुखरित करनेवाली महान नर्तकी अमला भारतीय नृत्य कला के इतिहास में सदैव अमर रहेंगी।

नृत्य शैली

वास्तव में उनकी नृत्य शैली किसी भारतीय शास्त्रीय नृत्य पर आधारित न होकर फ्री स्टाइल थी उसमें शास्त्रीयता के इतने अंशों का समावेश था कि किसी एक नृत्य शैली की विशुद्धता व विशेषताओं का अवलोकन इनमें असंभव था।

उन्होंने प्रारंभ में तांडव नृत्य, शिव पार्वती नृत्य, द्वंद्व एवं लंका दहन जैसे सरल, परंतु यूरोप के रंगमंच के लिए बिलकुल नए एवं आकर्षक विषयों का चयन कर नृत्य रचनाएँ तैयार की, जिसका नृत्य रसिकों के बीच काफी समादर हुआ।

बाद में उन्होंने गहन मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति पर आधारित व तात्कालिक ज्वलंत समस्याओं पर केंद्रित ‘लेबर एंड मशीनरी’ तथा ‘रिदम ऑफ लाइफ’ की रचना की। कुछ समय के बाद प्रगति की ओर कदम बढ़ाते हुए शैडो प्ले की तकनीक पर आधारित दो नए प्रयोग किए ‘रामलीला’ व ‘भगवान् बुद्ध’ ।

मेनका ने ग्रुप किया ज्वाइन

सन् १९३६ में उनकी नृत्य रचनाओं से प्रेरित होकर मेनका जैसी प्रतिभा संपन्न कलाकार उनके ग्रुप में आई, जिसने मुक्त शैली से हटकर कत्थक नृत्य की तकनीक पर आधारित ‘कृष्णलीला’, ‘देव विजय’ व ‘मेनका लास्यम’ जैसी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। उनकी आधुनिकतम कृतियाँ ‘शंकर स्कोप’ एवं रवींद्रनाथ टैगोर के गीति काव्य पर आधारित वैले ‘सामान्य क्षति’ थीं।

उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर की नींव पड़ी

उन्होंने १ मार्च, १९४० को अल्मोड़ा में ‘उदयशंकर इंडिया कल्चर सेंटर की नींव डाली’ जहाँ विभिन्न प्रांतों के गुरुओं और शिष्यों का अद्भुत संगत हुआ नृत्य के क्षेत्र में उन्होंने नई-नई संभावनाएँ खोजी, नए प्रयोग किए, लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत 1 को अंगीकार किया तथा अनुकूल पाश्चात्य साज-सज्जा, प्रकाश व्यवस्था और कुछ पूर्वी वाद्य यंत्रों को अपनाया।

परदे के पीछे रोशनी का प्रयोग कर उन्होंने छाया नृत्यों का अभिनय प्रयोग किया और नृत्य पर आधारित एक फीचर फिल्म ‘कल्पना’ बनाई। भारत की पौराणिक गाथाओं पर आधारित नृत्य नाटिकाओं की शास्त्राधारित प्रस्तुति कर उन्होंने नृत्य जगत् में भारतीय नृत्य कला को संजीवनी प्रदान की।

अतः नृत्य की इस नूतन विधा के आदि पुरुष के रूप में सदैव पूजनीय रहेंगे। राजकीय अनुदान के अभाव में उनका अल्मोड़ा केंद्र बंद हो गया और लोगों की बदलती अभिरुचि के कारण फिल्म असफल रही; किंतु यह गर्व के साथ स्वीकारना पड़ेगा कि आज की नृत्यकला के विकास में उनका विशिष्ट योगदान रहा।

उदय शंकर के शिष्य

उदयशंकर के पश्चात् उनके शिष्यों में प्रभात गांगुली, नरेंद्र शर्मा, सचिन शंकर, भगवान् दास वर्मा व अमला शंकर ने उनकी परंपरा को विकसित किया। प्रभात गांगुली ने ग्वालियर में रंग श्री बैले टुप में जवाहरलाल नेहरू की कृति ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’, रवींद्रनाथ की कृति ‘क्षदितो पाषाण’ पर आधारित हंग्री स्टोन्स, भैरवी व कन्याकुमारी नृत्य नाटिकाओं को उदय शंकर की मुक्त शैली पर नृत्यबद्ध किया।

नरेंद्र शर्मा ने भारतीय कला केंद्र की ‘रामलीला’, जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ व बच्चों के लिए टिक-टिक नृत्य नाटिकाओं की रचना उदय शंकर शैली के अनुरूप की। सचिन शंकर ने फिशरमेन, जलपरी, छत्रपति शिवाजी, ट्रेन, ना, नृत्य नाटिकाओं की रचना की। नाट्य बैले सेंटर, दिल्ली में भगवान् दासजी ने ‘कृष्णलीला’ की रचना की। उदयशंकर कल्चर सेंटर, कोलकाता में उनकी पत्नी अमला शंकर ने सीता स्वयंवर, वासवदत्ता और युगचंदा नृत्य-नाटिकाओं की रचना की।

पुरस्कार व सम्मान

उदय शंकरजी को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी की फेलोशिप, विश्वभारती विश्वविद्यालय की देशकोत्तम, भारत सरकार की पद्मविभूषण उपाधियों से सम्मानित किया गया। अपने तीन कनिष्ठ भ्राता प्रसिद्ध सितारवादक पं. रविशंकर, गायिका लक्ष्मी शंकर के पति और फिल्म गीतकार राजेंद्र शंकर तथा नृत्य शिक्षक ज्ञानेंद्र शंकर एवं नृत्यांगना पत्नी अमला शंकर, नृत्यांगना पुत्री ममता, संगीतकार पुत्र आनंद शंकर आदि का भी उन्हें पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। वे जीवनपर्यंत संगीत के प्रति समर्पित रहे २६ सितंबर, १९७७ को हृदय गति रुक जाने से कलकत्ता में उनकी मृत्यु हो गई।

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