मिर्जा गालिब अक्सर शाम के समय आम का लुत्फ उठाते थे। उन्हें आम बहुत पसंद थे, खासकर छोटे-छोटे नफीस और मीठे चौसा आम। एक महफिल में कुछ आम के शौकीन लोग बहस कर रहे थे कि आम में क्या खूबियां होनी चाहिएं।

गालिब फरमाते हैं “मेरे ख्याल में तो आम में दो खूबियां जरूरी हैं, मीठे हों और बहुत से हों। ” बुढ़ापे में उनको अपने आम खाने की ख़्वाहिश कम हो जाने का बहुत गम था। अपने एक दोस्त को लिखते हैं: “जी चाहता है बरसात में माहिरा जाऊं और दिल खोलकर और पेट भरकर आम खाऊं। अब न आमों की तरफ रगबत, न मेदे में इतने आमों की गुंजाइश। हां पहले आखिर रोज बाद हजम मेदे, आम खाने बैठ जाता था तो बेतकल्लुफ अर्ज करता हूं इतने आम खाता था कि पेट उभर जाता था और दम पेट में नहीं समाता था लेकिन अब दस-बारह से ज्यादा नहीं खाये जाते। अगर पेवंदी आम बड़े होते तो छह-सात।

एक और मशहूर किस्सा ग़ालिब के बारे में सुनाया जाता है कि एक दिन वह बादशाह के साथ लाल किले के महताब बाग की सैर कर रहे थे जब आम अपनी बहार पर थे। टहलते हुए बार-बार ग़ालिब अपनी गर्दन ऊंची करके आमों को बड़े गौर से देख रहे थे। बादशाह ने पूछ “मिर्ज़ा, तुम इतने ध्यान से क्या देख रहे हो”। “हजरत पीरो-मुर्शिद” ग़ालिब ने कहा, “किसी पुराने शायर ने कहा था:

दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम

फलां का, इब्ने फलां, और इब्ने फलां इब्ने फलां का नाम

इसलिए मैं यह देख रहा हूं कि किसी आम पर मेरा या मेरे बाप-दादा

का नाम लिखा है।” बादशाह मुस्कुराये और उसी दिन एक बेहतरीन आमों का टोकरा उनको भिजवा दिया। एक चीज़ और थी जिसका गालिब को बहुत शौक था और उसका शौक वह रात की तारीकी में करते थे। अपने एक दोस्त को लिखते हैं, “अभी मेरे गोदाम में सत्रह बोतलें शराब की मौजूद हैं। मैं दिन भर लिखता हूं और रात भर पीता हूं।

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