1857 की क्रांति: दिल्ली में अब बारिश कम होने लगी थी। जुलाई की उमस वाली गर्मी की जगह अगस्त की हरियाली ने ले ली थी। कुछ सुरुचिपूर्ण ब्रिटिश अफसरों ने अपने मुकाम की खूबसूरती को महसूस किया, जिसका पहले उन्हें कभी ख्याल नहीं आया था। उनमें से एक स्मार्ट नौजवान हैरी गैबियर भी था। जो सिर्फ 23 साल का था और जिसने हाल ही में ईटन से शिक्षा पूरी की थी।

वह 11 मई को दिल्ली में था और उस रात कर्नल नाइवेट के साथ फरार हुआ था। कुछ दिन के बाद वह दोनों वाइबर्ट के दल में जा मिले, और वहां गैबियर, दूसरे बहुत लोगों की तरह, हसीन ऐनी फॉरेस्ट पर बुरी तरह आशिक हो गया था, जिसको वह बहुत दिन से दूर से चाहता रहा।

हैरी और ऐनी उस वक़्त एक दूसरे के काफी करीब आ गए, जब उनको मिलकर गूजरों के हमलों और लूटपाट का सामना करना पड़ा। दोनों भूखे और अध-नंगे दोआब में फिरते रहे थे और आखिरकार उन्हें फरासू ने पनाह दी थी। अब गैबियर रिज से मेरठ में ऐनी को बड़े शायराना खत लिखता था, जिनमें वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का खाका खींचता था। उनमें तरबूज और आम के खाने का जिक्र होता, जो रोज उन्हें नाश्ते पर मिलता था। और उस फौजी रणनीति का जो वह रोज़ाना देखता था। अब उसने ऐनी को बताया कि घेराबंदी के जमाने में दिल्ली कितनी भिन्न हो गई है।

वह लिखता है:

“यह नजारा बहुत खूबसूरत है। जरा कल्पना करो कि तुम सूरज डूबने के वक्त फ्लैगस्टाफ टावर पर हो और तुम्हारे पीछे बादलों का एक चमकता हुजूम है, हरियाली लिया क्षितिज है, एक सफेद चौड़ी लकीर है, गिरे हुए स्तंभ हैं, जलकर काले हो चुके बंगले हैं। अब शहर की तरफ देखो। तुम्हारे दाएं-बाएं रिज है, और तुम्हारे कदमों तले एक खुला हरा-भरा मैदान, जहां जगह-जगह घने पेड़ हैं। यह मैदान शहर की दीवारों तक फैला हुआ है। वहां एक साफ-सुथरा रैकेट कोर्ट है, जहां अफसर अक्सर खेलते हैं। उसके आगे वह घर है जिसमें मि. कर्ल रहते थे। उसके सामने एसेंबली के कमरे हैं। बगैर छत के और जले हुए। इससे कितनी विभिन्न यादें जुड़ी हुई हैं: रौशनी, डांस, संगीत, घेरदार लिबास, तरह-तरह की आड़ी-तिरछी टोपियां, चमकते हुए बींबरदार, आखरी डांस। अगर मैं नहीं कहूंगा तो तुम कह दोगी-मिस ‘एच’, अपने खूबसूरत जिस्म और रूठे चेहरे के साथ…

“एसेंबली के कमरों के परे लूडलो कासल नजर आता है (जो रेजिडेंट साइमन फ्रेजर का घर हुआ करता था), उसके पीछे दो पक्के घर, जिनमें पहले गैलोवे दंपती रहते थे… दूरबीन से देखो, तो हर तरफ बगावती नजर आते हैं जो शहर की दीवारों और पत्थरों की आड़ में छिपे हमारी तरफ निशाना लगाने को बैठे हैं लेकिन उनके निशाने हमेशा चूक जाते हैं। पूरा शहर इतनी खूबसूरती से सामने फैला हुआ है कि एक कलाकार के मुंह में पानी भर आए, दरिया एक खूबसूरत चौड़ी चांदी की चादर की तरह तेजरफ्तारी से बह रहा है, जिसके बीच में एक नाजुक सी लाइन नज़र आती है, जोकि कश्तियों का पुल है जो अभी तक सलामत है।

बाड़ा हिंदू राव में भी काबुल, लाहौरी और मोरी दरवाज़ों से इसी तरह गोलाबारी हो रही है और अजमेरी दरवाज़े से सब्जी मंडी पर तोपें छोड़ी जा रही हैं। “गैंबियर इतना संवेदनशील तो था कि वहां के दृश्यों की खूबसूरती से लुत्फ उठा रहा था, लेकिन वह यह भी जानता था कि जंग की निर्दयता को देखकर वह सख्तदिल और कट्टर बनता जा रहा था और उसने यह भी ऐनी को सफाई से लिख दिया। और यह भी बताया कि किस तरह एक लड़ाई में उन्होंने एक सिपाही दस्ते को पीछे धकेला, और उनके पीछे हटने के बाद, एक बगैर सवार का घोड़ा घूमता नजर आया। हमारे दो आदमी दीवारों की आड़ लेकर नीचे पहुंच गए और घोड़े पर कब्जा कर लिया। वहां पास में ही एक जख्मी सवार पड़ा था, जिसको उन्होंने सिर पर ठोकरें मार-मार कर मार डाला। मेरा दिल भी इतना सख्त हो चुका है कि इसमें रहम की वह गुंजाइश नहीं है जो किसी दूसरे भले दुश्मन के लिए हो सकती थी।

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