delhi theatre

delhi theatre दिल्ली, रंगमंच पर साहित्यिक प्रयोगों ,रूपो का खूबसूरती के साथ प्रदर्शन हो रहा है। इसके भिन्न-भिन्न रूप मंच पर दिखाई दे रहे हैं, संगम पांडे ने यह उद्गगार प्रस्ताव के तृतीय राष्ट्रीय नाटक समारोह के अंतर्गत रंग- चौपाल आयोजन में व्यक्त किए। रंग चौपाल के मुख्य वक्ताओं ने रंगमंच पर हो रहे विभिन्न विधाओं के प्रयोग पर विस्तृत विचार व्यक्त किए।

 सुमन कुमार, जिन्होंने देश-विदेश में रंगमंच के प्रयोगकर्ता आयोजक व निर्देशक के तौर पर अपनी भूमिका निभाई है ।उन्होंने नाटक (delhi theatre) के प्रारंभ और इसके इतर बाद के प्रयोगों पर प्रकाश डाला और बताया सर का सारा दारोमदार प्रयोगकर्ता पर होता है। जो शेक्सपियर को सेक्सपियर और तरह-तरह के पियर के तौर पर प्रस्तुत कर सकता है ।वह अर्थ का अनर्थ कर सकता है और अर्थ के अनंत पक्ष सामने ला सकता है।

 इसी वर्ष संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित रंगकर्मी सुरेंद्र शर्मा की ने उपन्यासों पर आधारित नाट्य -रूपांतरों की रचना प्रक्रिया और उसे दूसरे लोगों की प्रक्रियाओं पर अपने विचार रखें और उन अनुभवों को साझा किया जिससे उन रचनाकारों की रचना ने सर्वथा एक नई रचना का स्वरूप ग्रहण किया। (delhi theatre)

युवा नाटक प्रशिक्षक अभिनेता और नाटक संगीत विशेषज्ञ अजय कुमार ने संगीत नाटक, गीति नाट्य , पहली रचना समुद्र मंथन से आज तक के नाटकों की यात्रा पर प्रकाश डाला और अपनी रचना प्रक्रिया से अवगत कराया। नाट्य समीक्षक व आज तक पत्रिका से जुड़े शिवकेश मिश्रा ने अपने देखे हुए नाट्य -प्रदर्शनों पर और उनके स्वरूपों पर उदाहरणों के साथ अपने विचारों से दर्शकों को अवगत कराया।

अंत में सांस्कृतिक पत्रकार समीक्षक नाट्य समालोचक संगम पांडे ने नाटक के अद्वैत पक्ष को सामने  लाते  हुए आधुनिक रंगमंच के प्रयोगों पर रोशनी डाली। कार्यक्रम की अगली कड़ी के तौर पर अजय कुमार के निर्देशन में विजय दान देथा की कहानी ‘रिजक की मर्यादा’ पर आधारित नाट्य प्रस्तुति’ बड़ा भांड तो बड़ा भांड’ का कथा -गायन -वाचन शैली में संगीतमय  प्रस्तुति से कला और कलाकार के द्वंद्व और उसके सारोकारों को सामने रखा। (delhi theatre)

विभिन्न चरित्रों की गति ,लय के साथ  भाव -भंगिमाएं रोमांच पैदा कर रहीं थी। संगीत पक्ष में अनिल मिश्रा के गायन/ सारंगी वादन तथा राजेश पाठक के गायन, सुशील शर्मा, मुस्तफा हुसैन  के संगीतमय सहयोग से प्रस्तुति उच्चता के शिखर पर पहुंचती है। और दर्शक संगीत की लय और अभिनय से मंत्र मुग्ध हो जाते हैं।राज नारायण दीक्षित की प्रकाश योजना नाटक के प्रभाव को उभारती है। इस तरह की संगोष्ठी और साहित्यिक आयोजन से रंगमंच के रचनात्मक पक्ष को आमजन से साक्षात्कार होता हैं।

कलाकारों और रचनाकारों के सामाजिक  सरोकार व द्वंद्व सामने आते हैं। इसी श्रृंखला में कल मुकेश झा के निर्देशन में श्याम  दलहरे की कहानी ‘कम्मल ‘का मंचनभिलाषा रविन्द्र  फाउंडेशन , मधुबनी , बिहार मुधुबनी , बिहार द्वारा होना है।

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