दूसरा विवाह ना कर देश सेवा को दी प्राथमिकता
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
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Vithalbhai Patel biography: केन्द्रीय विधान सभा के प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष, विट्ठलभाई झावेरभाई पटेल राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित देशभक्ति की प्रतिमूर्ति थे। राष्ट्रीय मामलों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका, एक विधि विशेषज्ञ और एक प्रख्यात संसदविद् के रूप में उनका विशद और व्यापक अनुभव तथा केन्द्रीय विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में प्रदर्शित निष्पक्षता, गरिमा और सत्यनिष्ठा के महान गुणों के कारण उनकी गणना हमारे महान नेताओं में होती है।
जन्म एवं आरंभिक शिक्षा
विठ्ठलभाई पटेल का जन्म 27 सितम्बर, 1873 को गुजरात में कैरा जिले के नाडियाड में हुआ था। विद्यालय की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् उन्होंने बंबई में गोखले इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया और वहां से वर्ष 1895 में डिस्ट्रिक्ट प्लीडर्स की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसके बाद उन्होंने वकालत शुरू की और एक योग्य तथा सफल वकील के रूप में ख्याति प्राप्त की। विट्ठलभाई पटेल वर्ष 1905 में विधि में आगे के अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए और वहां ‘लिंकन्स इन’ में दाखिला लिया।
वह 1 जुलाई, 1908 को ‘बार’ के सदस्य बने। इसके बाद वह भारत वापस आए और बंबई में अपनी वकालत शुरू कर दी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि विदेश में उनके अनुभव और ‘बार’ में उनकी सफलता उनके आगामी लंबे राजनीतिक जीवन में काफी सहायक सिद्ध हुई।
नहीं की दूसरी शादी, देशसेवा प्राथमिकता
उस समय की प्रथा के अनुसार और अपने माता-पिता तथा अन्य बड़े लोगों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए विट्ठलभाई पटेल ने 1882 में अल्पायु में ही दीवालीबाई से विवाह किया था।
तथापि, 1910 में उनकी पत्नी का बीमारी से देहांत हो गया जिससे स्वाभाविक ही उनके जीवन में खालीपन आ गया। पत्नी के निधन के बाद उन पर पुनः विवाह करने का दबाव था किन्तु, उन्होंने दूसरी बार विवाह करने से इंकार कर दिया और इसके बजाय अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित करने का निर्णय लिया।
बंबई प्रेजीडेंसी लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए निर्वाचित
विट्ठलभाई पटेल वर्ष 1918 में ‘इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ के लिए निर्वाचित हुए। इससे पहले वह 1912 में ‘बंबई प्रेजीडेंसी लेजिस्लेटिव काउंसिल’ के लिए निर्वाचित हुए थे। काउंसिल के सदस्य के रूप में उन्होंने दृढ़ निश्चय और उत्साह से कार्य किया।
अपने तीखे प्रश्नों, अनुपूरक प्रश्नों, सुविचारित संकल्पों, उचित और समय पर हस्तक्षेप तथा नियम और प्रक्रियाओं की पूरी जानकारी के साथ वह सत्ता पक्ष को हैरान कर देते थे। शीघ्र ही उन्होंने स्वयं को सभा में जनता की समस्याएं और शिकायतें उठाने वाले प्रभावी सदस्य के तौर पर स्थापित कर लिया था।
‘बंबई लेजिस्लेटिव काउंसिल’ में प्राप्त इस अनुभव का उन्हें बाद में ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ और ‘केन्द्रीय विधान सभा’ में बहुत लाभ हुआ। वर्ष 1924 में वह बंबई शहर से ‘केन्द्रीय विधान सभा’ के सदस्य निर्वाचित हुए और उसके बाद स्वराज पार्टी में उपनेता बने। सर फ्रेडरिक वाइट की सेवानिवृत्ति के पश्चात् 22 अगस्त, 1925 को उन्हें केन्द्रीय विधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। वह पहले भारतीय थे जिन्होंने इस प्रतिष्ठित पद को सुशोभित किया।
‘केन्द्रीय विधान सभा’ के अध्यक्ष
विट्ठलभाई पटेल के मन में लोकतांत्रिक संस्थाओं और उनकी परंपराओं के प्रति अत्यधिक सम्मान था और संसदीय सरकार में उनकी अटूट आस्था थी।
‘केन्द्रीय विधान सभा’ के अध्यक्ष का पदभार संभालते हुए उन्होंने सभा को आश्वस्त किया था कि वह अपने पद की जिम्मेदारियों के प्रति पूर्णतया सचेत हैं और एक आदर्श अध्यक्ष की छवि के अनुकूल अपने आपको ढालने का पूरा प्रयास करेंगे।
वह सभा के सभी पक्षों के प्रति पूर्णतया निष्पक्ष रहते थे। सभा को उनके रूप में एक ऐसा पीठासीन अधिकारी मिला जो साहसिक और स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता था और जिसने अध्यक्षपीठ की प्रतिष्ठा तथा सभा की गरिमा को बढ़ाया।

विठ्ठलभाई पटेल केन्द्रीय विधान सभा के प्रथम निर्वाचित गैर-आधिकारिक अध्यक्ष की अपनी भूमिका के प्रति पूरी तरह सजग थे। इस तथ्य के बावजूद भी कि भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत गठित इस विधान सभा को स्वतंत्र देशों के विधानमंडलों के समान शक्तियां प्राप्त नहीं थीं, उन्होंने अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन मात्र एक पीठासीन अधिकारी के रूप में ही नहीं अपितु सभा के सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों के संरक्षक के रूप में भी किया।
उन्होंने आधिकारिक रूप से शक्तियों के अतिक्रमण के विरुद्ध सभा के गैर-आधिकारिक सदस्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए सभा के नियमों और आदेशों की न्यायपूर्ण ढंग से व्याख्या की।
पृथक सचिवालय की स्थापना का मामला उठाया
वर्ष 1926 में विट्ठलभाई पटेल एक निर्विरोध स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में केन्द्रीय विधान सभा में वापस आए। 20 जनवरी, 1927 को उन्हें पुनः विधान सभा का अध्यक्ष चुना गया। अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के तुरंत बाद, उन्होंने सभा के लिए पृथक सचिवालय की स्थापना के मामले को सरकार के समक्ष उठाया।
सभा के अधिकार को बढ़ाने और अध्यक्षपीठ की स्वतंत्रता हासिल करने के प्रयास के रूप में इस मामले की ओर उनका ध्यान पहले भी गया था।
इस संबंध में उनके द्वारा किए गए प्रस्तावों पर जब सरकार से समुचित उत्तर नहीं मिला तो सितम्बर, 1928 में उन्होंने केन्द्रीय विधान सभा में एक विस्तृत वक्तव्य दिया कि यदि अध्यक्ष को प्रभातपूर्ण और निष्पक्ष रूप से अपने संवेदनशील एवं निर्धारित कर्त्तव्यों का निर्वहन करना हो तो यह आवश्यक है कि उसके सीधे नियंत्रण में कुछ कर्मचारी दिए जाएं जो किसी अन्य प्राधिकारी के प्रति उत्तरदायी न हों।
तद्न्तर, विपक्ष के नेता, पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा अध्यक्ष के अधीन पृथक विधान सभा विभाग के सृजन हेतु एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था जिसे 22 सितम्बर, 1928 को सभा द्वारा स्वीकृत किया गया और 10 जनवरी, 1929 को गवर्नर जनरल के विभाग के अंतर्गत परंतु अध्यक्ष के नियंत्रण में एक पृथक स्वायत्तशासी विभाग के रूप में इसका सृजन किया गया।
अध्यक्षपीठ की आलोचना का विरोध
अप्रैल, 1929 में अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए विठ्ठलभाई पटेल ने जन सुरक्षा विधेयक (पब्लिक सेफ्टी बिल) संबंधी प्रवर समिति के प्रतिवेदन पर चर्चा के लिए सरकार के प्रस्ताव को तब तक प्रस्तुत करने से मना कर दिया जब तक सरकार द्वारा उसी समय चलाए गए मेरठ षडयंत्र के मुकदमे का फैसला न आ जाए।
अध्यक्ष पटेल का यह निर्णय दृढ़ और सुस्पष्ट परंतु सिद्धांतों पर आधारित था। बाद में सभा में अपने अभिभाषण के दौरान वायसराय के इस तर्क कि अध्यक्ष द्वारा की गई व्याख्या सभा की कार्यवाही को शासित करने वाले सुसंगत नियम के अनुरूप नहीं है, के बावजूद वह अपने निर्णय पर अटल रहे।
अध्यक्ष पटेल ने अध्यक्षपीठ की आलोचना का विरोध करते हुए वायसराय को पत्र लिखा और उसमें किसी प्रस्ताव को स्वीकृति देने या अस्वीकार करने में अध्यक्ष की स्वतंत्रता पर बल दिया।
आंगतुकों पर नियंत्रण को लेकर सरकार से विवाद
जनवरी, 1930 में सभा में आगंतुकों पर नियंत्रण के मामले में अध्यक्ष और सरकार के बीच विवाद उत्पन्न हुआ।
अध्यक्ष पटेल ने घोषणा की कि सभा के परिसर की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा की गई सुरक्षा व्यवस्था अध्यक्षपीठ के प्राधिकार के लिए चुनौती होगी।
सरकार ने इस विचार से असहमति जतायी और कहा कि सभा की सुरक्षा से संबंधित मामले में वह सर्वोत्तम निर्णायक है।
दूसरी ओर अध्यक्ष पटेल ने इस बात पर जोर दिया कि सभा के परिसर का नियंत्रण अध्यक्षपीठ के अधीन होना चाहिए और इसका निर्णय होने तक दीर्घाओं को बंद करने का आदेश दिया।
अंत में समझौता हुआ जिसके अंतर्गत सभा में सुरक्षा व्यवस्था को अध्यक्ष के नियंत्रणाधीन रखा गया जो उसके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त अधिकारियों के माध्यम से अपने प्राधिकार का उपयोग करेगा। इस समझौते के फलस्वरूप वाच एंड वार्ड सर्विस की उत्पत्ति हुई।
केंद्रीय विधान सभा से त्यागपत्र
विठ्ठलभाई पटेल ने भारत की स्वतंत्रता के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए केन्द्रीय विधान सभा को प्रभावी मंच के रूप में उपयोग करने की मांग की, यद्यपि उन्होंने अध्यक्षपीठ की गरिमा को कायम रखने तथा स्वस्थ संसदीय परंपराओं को स्थापित करने के पूरक कृत्यों की कभी भी अनदेखी नहीं की।
जब वह सभा के अध्यक्ष थे तो उन्होंने उन विधायी उपायों के बारे में निर्भीकता और स्पष्टता से कहा और लिखा जिन्हें कार्यपालिका द्वारा सभा पर लागू किए जाने की मांग की गई थी और जिन्हें वे राष्ट्रीय हित में बाधक समझते थे।
इस दौरान अध्यक्ष पटेल ने महसूस किया कि अपने प्रयासों के बावजूद वह विधान सभा के सदस्यों की गरिमा, अधिकारों और विशेषाधिकारों को कार्यपालिका के अतिक्रमणों से पर्याप्त रूप से सुरक्षित नहीं रख पाए हैं।
अतः 26 अप्रैल, 1930 को विट्ठलभाई पटेल ने यह घोषणा करते हुए केन्द्रीय विधान सभा से त्यागपत्र दे दिया कि वह स्वतंत्रता संग्राम में अपने देश की जनता का साथ देंगे। उन्होंने महात्मा गांधी को पूर्ण समर्थन देने की प्रतिज्ञा की और बारदोली में कर न देने के अभियान में तेजी लाना उनका पहला कदम था। केन्द्रीय विधान सभा की अध्यक्षता से त्यागपत्र देने के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार और कैद कर लिया गया।
राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय योगदान
वर्ष 1931 के आरंभ में विट्ठलभाई पटेल चिकित्सा उपचार के लिए वियना गए और वर्ष के अंत में भारत लौट आए। एक बार फिर वह राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े।
जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 5 जनवरी, 1932 को पुनः गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण जल्दी ही छोड़ दिया गया। वर्ष 1932 में पटेल ने अमरीका की जनता को भारत की स्थिति से अवगत कराने की दृष्टि से वहां का दौरा करने की जिम्मेदारी ली।
निधन से पहले जनता के नाम भावुक संदेश
वर्ष 1933 में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और इलाज के लिए यूरोप चले गए। 22 अक्तूबर, 1933 को जेनेवा में उनका निधन हो गया।
अपने निधन से पहले महान देशभक्त पटेल ने अपने देशवासियों को जो संदेश दिया था वह इन शब्दों के साथ समाप्त हुआ,
“इससे पहले कि मेरी मृत्यु हो, मैं प्रार्थना कर रहा हूं कि भारत को शीघ्र स्वतंत्रता प्राप्त हो।
महात्मा गांधी जी ने विठ्ठलभाई पटेल को ‘एक निर्भीक वक्ता‘ बताया।
सदस्यों ने 20 नवम्बर, 1933 को केन्द्रीय विधान सभा में भावभीनी श्रद्धांजलि दी। विधान सभा के अध्यक्ष सर षणमुगम चेट्टी ने विठ्ठलभाई पटेल के साथ अपने संबंध को याद करते हुए कहा, “उनके निधन से हमने भारत के सार्वजनिक जीवन के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति को खो दिया……. देशभक्त के रूप में वह महान थे, वह महान इसलिए थे क्योंकि उन्होंने अपनी मातृभूमि के सेवक के रूप में काम किया, भारतीय विधान सभा के महान अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यों को सदैव याद किया जाएगा…… मुझे विश्वास है कि भावी इतिहासकार, जो उचित निर्णायक होंगे, विठ्ठलभाई पटेल को भारत के महान सपूतों की श्रेणी में उत्कृष्ट स्थान देंगे”।
8 मार्च, 1948 को संविधान सभा (विधायी) के समक्ष विठ्ठलभाई जे. पटेल का चित्र प्रदर्शित करके उनके प्रति अभूतपूर्व सम्मान व्यक्त किया गया।
तत्कालीन अध्यक्ष (स्व. जी.वी. मावलंकर) ने सभा को निम्नवत् बतायाः
“मैं 1915 से अध्यक्ष पटेल को व्यक्तिगत तौर पर जानता था और जन सामान्य के साथ कार्यकर्ता के तौर पर उनके साथ जुड़ने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था। किंतु यह अध्यक्ष पटेल के लिए मेरा व्यक्तिगत आदर और स्नेह नहीं है जिसने मुझे फ्रंटियर के एक प्रशंसक द्वारा भेंट की गई इस सुंदर तस्वीर, जो सभा के सामने है, को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह इस सभा में हमारी व्यस्तता के चीच दिनोंदिन उनकी स्मृतियों को ताजा रखेगी। मैं महसूस करता हूं कि आज हम सम्प्रभु विधानमंडल के रूप में जिन ऊंचाइयों पर खड़े हुए हैं उसकी लोकतांत्रिक नींव उनके द्वारा रखी गई है, अतः कृतज्ञता के भाव के रूप में हमें उन्हें इस सुंदर तस्वीर के रूप में इस कक्ष में सदैव अपने साथ रखना चाहिए। अध्यक्षपीठ के ठीक सामने वह पीठासीन अधिकारी के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शक के रूप में रहेंगे।”
उस अवसर पर अपनी श्रद्धांजलि देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री और सदन के नेता,पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा:
व्यापक परिवर्तन हुए हैं और ऐसा महसूस होता है
संभवत, हमेशा इसी तरह महसूस होता है कि उन दिनों हमारे राजनैतिक क्षेत्र में असाधारण गुणों से सम्पन्न और कद्दावर व्यक्ति थे और विठ्ठलभाई पटेल उन महानुभावों में से एक थे। यह सही है कि हमें उनकी स्मृति का देश में ही नहीं बल्कि विशेष रूप से इस सभा में भी सम्मान करना चाहिए और इस चित्र के रूप में उनकी यादों को सदैव अपने समक्ष रखना चाहिए……. हम दिवंगत, असाधारण गुण-सम्पन्न व्यक्तियों में से एक महान भारतीय की स्मृति के रूप में यहां इस चित्र का स्वागत करते हैं। बल्कि हम उन पुराने दिनों के बारे में उत्कंठापूर्वक सोचते हैं. महोदय, यदि मुझे अनुमति दें तो मैं सभा की ओर से सभा में इस नए सदस्य अर्थात एक पूर्व अध्यक्ष जो निरंतर हमें देख रहे हैं और हमारे कार्य में मदद कर रहे हैं का स्वागत करता हूं।”
संसद परिसर में विठ्ठलभाई पटेल की 9 फुट ऊंची प्रतिमा भी है जो संसद भवन के प्रतीक्षा कक्ष 3 के चार आलों में से एक में सुशोभित है। जिसका अनावरण भारत के तत्कालीन उप-राष्ट्रपति तथा राज्य सभा के सभापति, श्री भैरों सिंह शेखावत ने 5 दिसम्बर, 2006 को किया था।
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