अमिताभ ने अपनी एक्टिंग से रोल में फूंक दी जान, फैंस ने जमकर सराहा
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Amitabh Bachchan: जिस तरह ‘सात हिंदुस्तानी’ की शूटिंग गोवा में हुई थी, उसी तरह ‘रेशमा और शेरा’ की शूटिंग राजस्थान के जेसलमेर में हुई। वहाँ भी पूरे यूनिट को रेगिस्तान में गड़े तंबुओं में कई दिनों तक एक साथ रहना पड़ा।
जैसाकि हम कह चुके हैं, ‘रेशमा और शेरा’ सुनील दत्त की एक बड़े बजट की और महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी। एक भव्य फिल्म। वर्षों पहले उन्होंने डाकुओं के जीवन पर ‘मुझे जीने दो’ नाम की एक फिल्म बनाई थी, जो न सिर्फ एक उत्कृष्ट फिल्म थी, बल्कि बॉक्स ऑफिस के पैमाने पर भी उतनी ही लोकप्रिय साबित हुई थी। ‘
रेशमा और शेरा’ को भी सुनील दत्त ने उतनी ही लगन और मेहनत से, उतने ही प्यार से बनाया था। लेकिन ‘मुझे जीने दो’ जितनी बड़ी हिट थी, ‘रेशमा और शेरा’ उतनी ही बड़ी फ्लॉप साबित हुई।
इस फिल्म की विफलता से उबरने में सुनील दत्त को कई वर्ष लग गए। ‘मदर इंडिया’ के बाद वे ‘बिरजू’ की विद्रोही और हिंसक छवि को दोहराने से बचते रहे थे, और ‘सुजाता’, ‘साधना’ और ‘नर्तकी’ जैसी आदर्शवादी या ‘गुमराह’, ‘वक्त’ और ‘मिलन’ जैसी प्रेम-प्रधान भूमिकाएँ करते रहे थे। लेकिन ‘रेशमा और शेरा’ की असफलता के बाद वे धड़ल्ले से डाकू की भूमिकाओं में नजर आने लगे-‘हीरा’, ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’, ‘जख्मी’ और इसी तरह की न जाने कितनी दूसरी फिल्में।
‘रेशमा और शेरा’ राजस्थानी पृष्ठभूमि पर आधारित थी-दो कबीलों की शत्रुता के बीच पनपती एक दुखांत प्रेम-कथा। यानी ‘मुझे जीने दो’ की तरह ही बंदूकों के साए में मानवता का संदेश लिए। इसमें सुनील दत्त और वहीदा रहमान की केंद्रीय भूमिकाओं के अलावा कई नए और उभरते हुए कलाकार थे-राखी, विनोद खन्ना, रंजीत और अमिताभ बच्चन।
दो विरोधी कबीलों के सरदारों के रूप में के. एन. सिंह और जयंत भी थे। अमिताभ जयंत के चार बेटों में से सबसे छोटे बेटे की भूमिका में थे। तीन लड़ाकू और रोबीले भाइयों का सबसे छोटा और बेहद डरपोक और दब्बू भाई। लेकिन, दुर्भाग्यवश, उतना ही अचूक निशानेबाज भी।

इस फिल्म का निर्देशन पहले सुखदेव के हाथ में था जिन्होंने बाद में फीचर फिल्मों की बजाय डाक्यूमेंट्री फिल्मों में ज्यादा नाम कमाया। लेकिन सुनील दत्त उनके काम से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए कुछ दिनों की शूटिंग के बाद उन्होंने फिल्म का निर्देशन अपने हाथ में ले लिया।
अमिताभ के लिए इस फिल्म की शुरुआत ही गलत हुई थी। पहले इस फिल्म में विनोद खन्ना नहीं थे। लेकिन बाद में सुनील दत्त उन्हें भी ले आए (वे उनकी पिछली फिल्म ‘मन का मीत’ के खलनायक थे), और परिणामस्वरूप अमिताभकी भूमिका कटकर काफी छोटी रह गई। इसके बाद जब जैसलमेर पहुँचकर वे अपने संवाद याद करने लगे तो अचानक ही उन्हें पता चला कि उन्हें एक भी संवाद नहीं बोलना था, क्योंकि फिल्म में उन्हें गूँगा दिखाया जा रहा था।
इस फैसले के पीछे सुनील दत्त की मजबूरी ही थी। अमिताभ की भूमिका एक डरपोक और दब्बू युवक की थी, जिसे उसके दो बड़े भाई (विनोद खन्ना और मोहन अघाशे) विरोधी कबीले के सरदार के बेटे पर निशाना लगाने के लिए बाध्य करते हैं। बाद में सुनील दत्त (जो सबसे बड़े भाई हैं और विरोधी कबीले के सरदार की बेटी से प्रेम करते हैं) इस हत्या का बदला अपने भाइयों और पिता से लेते हैं।

अमिताभ की रोबीली और भारी आवाज उनके दब्बू चरित्र के साथ मेल नहीं खा रही थी, इसलिए सुनील दत्त को विवश होकर उनके पात्र को गूँगा बनाने का फैसला करना पड़ा था। लेकिन एक नए और संघर्षरत अभिनेता के लिए जो अपनी प्रतिभा दिखाने का अधिक-से-अधिक अवसर तलाश रहा हो यह एक बड़ा और विचलित कर देने वाला झटका था।
लेकिन आश्चर्य! गूँगे की अपनी उस छोटी-सी भूमिका में भी अमिताभ ने मानो प्राण फूंक दिए थे। व्यावसायिक दृष्टि से असफल होने के बावजूद इस फिल्म को कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भाग लेने का गौरव प्राप्त हुआ था। सुनील दत्त के अनुसार, “फिल्म देखने के बाद सभी विदेशी दर्शक सिर्फ दो अभिनेताओं के बारे में जानना चाहते थे राखी और अमिताभ के बारे में।” इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अमिताभ को अपनी दो मनपसंद अभिनेत्रियों को करीब से देखने का भी अवसर मिला था। पहली एक दर्शक के रूप में उनकी मनपसंद अभिनेत्री और दूसरी एक नायक के रूप में उनकी मनपसंद अभिनेत्री। यानी वहीदा रहमान और राखी।
अमिताभ बच्चन स्पेशल
राजेश खन्ना, शशि कपूर की शूटिंग देखने के लिए Amitabh bachchan को करनी पड़ती थी मशक्कत
कभी बी. आर. चोपड़ा से लेकर शक्ति सामंत तक ने Amitabh bachchan को दे डाली थी एक्टिंग छोड़ घर…
दिल्ली के शीला सिनेमा में पहली बार खुद को बड़े पर्दे पर देखा Amitabh Bachchan ने – मां-बाप भी…
दोस्तों ने कहा ताड़ पर Amitabh Bachchan को देख जया ने कही थी यह बात…
Amitabh Bachchan: जिसे सबने नकारा, उसे K.A. अब्बास ने कैसे बना दिया ‘सदी का महानायक’!
किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है Amitabh Bachchan को मिला पहला ब्रेक!
मुंबई आया था हीरो बनने, होटल में ठहरा तो भी किसी ने नहीं पूछा–…
जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया फोन, फिर भी Amitabh Bachchan को झूठ बोलना पड़ा…