दिल्ली
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कभी दिल्ली में प्रेमी-प्रेमिकाओं की आवाज थी पतंगे
एक कहानी मैं कहूं, सुन ले मेरे पूत
बिना परों के उड़ गया बांध गले में सूत
बूझो तो जानें, किसी ने कहा और बच्चों ने...
दिल्ली, कबूतरबाजी और एक से बढ़कर एक कहानियां
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
दिल्ली के कबूतरबाज उड़ान में दूसरे कबूतरबाजों से शर्तें भी लगाते थे। अगर किसी कबूतरबाज का कबूतर किसी दूसरे की टुकड़ी...
कबूतर पालने का इतिहास, दिल्ली में कैसे लोकप्रिय हुआ कबूतरबाजी
एक समय संदेश भेजने के लिए सबसे विश्वसनीय समझे जाते थे कबूतर
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
इंसान ने कबूतर को हमेशा दो मकसदों से पाला है।...
जब कबूतर के लिए रोने लगे दिल्ली के नवाब
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
दिल्ली के एक मशहूर कबूतरबाज मिर्जा फखरु यानी मिर्जा चपाती थे। उनको कबूतरबाजी में पतंगबाजी की तरह कमाल हासिल था। मिर्ज़ा...
धूप से बचने के लिए कबूतर का बादल बना लेते थे बहादुरशाह जफर
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
जहांगीर के शासन काल में कबूतरबाजी को इश्कबाजी का नाम भी दे दिया गया था। शायद इसकी वजह जहांगीर का नौजवानी...
कबूतर की वजह से परवान चढ़ा शहजादा सलीम और नूरजहां का इश्क
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली
प्राचीन काल से कबूतर इन्सान का दोस्त, हमदम और हमराज रहा है। पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ के महलों में भी कबूतर...
दिल्ली के चवन्नी वाले, जिनके दम पर चलती थी थियेटर कंपनियां
उर्दू थियेटर को ही पारसी थियेटर भी कहा जा सकता है। इनके 'बाइस्कोप' को आर्थिक सहयोग देने में 'चवन्नी वाले' दर्शकों का ही हाथ...
पुराने दिनाें में दिल्ली में इन कहानियों पर हाेता था थियेटर, कई शो सुपरहिट
दिल्ली में आमतौर पर नाटक रात को दस बजे शुरू होते थे। एडवांस बुकिंग का रिवाज नहीं था। हर दर्जे के टिकट शो शुरू...
दिल्ली में थियेटर कंपनियों का इतिहास
उन्नीसवीं सदी के अंत में और बीसवीं सदी के प्रारंभ में भी कई पक्के थियेटर बने। इन थियेटरों में रामा थियेटर (जो बाद में...
भारत में स्टेज एवं थियेटर के सफर की कहानी
हिन्दुस्तान में स्टेज और थियेटर की शुरुआत पुर्तगालियों के आगमन से हुई। पुर्तगाली 1498 में व्यापार के उद्देश्य से हिन्दुस्तान आए थे। उन लोगों...