मुंबई में अकेलेपन, भूख और बेघर होने की पीड़ा के बीच भी अमिताभ बच्चन ने अपने सपनों को टूटने नहीं दिया
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
ये Amitabh Bachchan के संघर्ष के दिन थे। भाई अजिताभ का ट्रांसफर हो गया, अमिताभ मुंबई में अकेले पड़ गए। ना रहने का ठिकाना ना खाने की व्यवस्था। लेकिन अमिताभ संघर्ष से घबराकर मैदान छोड़कर भाग जाने के लिए तैयार नहीं थे।
बंटी के जाने के बाद वे अपने पिता हरिबंश राय बच्चन जी के एक परिचित के पास मैरिन ड्राइव के उनके फ्लैट में चले आए थे खेतान परिवार के फ्लैट में।
उनके इस फ्लैट में आने से पहले उन्होंने दो रातें मैरिन ड्राइव की दीवार पर, वहाँ की एक बेंच पर गुजारी थीं। वे दो रातें उनकी परीक्षा की रातें थीं। अपने लक्ष्य तक पहुँचने के उनके संकल्प और उनके मन की दृढ़ता की परीक्षा की रातें।
मैरिन ड्राइव जहाँ उनके संघर्ष और पीड़ा, उनकी छटपटाहट और कुंठा का प्रतीक था, वहीं उनके सपनों, उनकी आशाओं और उनकी प्रेरणाओं का प्रतीक भी। इसकी लंबी, खूबसूरत सड़क की गतिशीलता, इसके समुद्री किनारे की रोमानी दृश्यावली, और दूर क्षितिज को छूते इसके समुद्र का भव्य फैलाव उन्हें अपने-आपको एक चुनौती देते हुए प्रतीत होते।

एक तरफ अपनी टाँगें छोटी करवा लेने या अपनी आवाज में थोड़ी मिठास और नम्रता पैदा करने की सलाह देने वाले निर्माता थे, और दूसरी तरफ उनके दिल में मचलता एक ऊँचा और भव्य सपना जो किसी भी कीमत पर दबने के लिए तैयार न था!

वे सचमुच बहुत दुविधा और असमंजस के दिन थे। इस शहर पर, इसके फिल्म उद्योग पर और अपने-आप पर आश्चर्य करने के दिन। तमाम अड़चनों के बावजूद, तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बावजूद उनका सपना उनका साथ छोड़ने को तैयार न था। या यूँ कहें कि दिल था कि मानता नहीं था।
अमिताभ बच्चन स्पेशल
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